Book Title: Harichand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 51
________________ (४५) ॥दोहा॥ ॥ वलि वाजे विरहलहरी, वलि वलि करे विलाप ॥ मन जाणे जश्ने मबुं, घणुं पढतावे आप ॥१॥ बहु गुणवंती गोरडी, चंद वदन कटि दीण ॥ आशाबुब्धी साहीधणी, में वेची मति हीण ॥२॥रे मन दृष्ट दरात्मा. पापी कर कठोर ॥ तूं किम उडी नां गयो, करी अबलासुं जोर ॥३॥ हा हवे हुँ जाउँ किहां, केहसुं करूं आलोच ॥ महोर हजी थाके घणी, सबल पड्यो एम सोच ॥४॥ वेंची तारालोचनी, वेच्यो रा जकुमार ॥ वेच्या मंदिर मालीयां, राजाधि नं मार ॥५॥ हजीय दंम आगे लग्यो, करीयें क वण उपाय॥के अकर्म करणी करूं, के मुज वाचा जाय ॥६॥श्म चिंतवतां चित्तमें, सूर गयो पर तीर ॥ श्रीहरिचंद महिपति, जव्यो साहस धीर॥ ॥७॥ दिन दूरंतां निर्गम्यो,रयणी रोयंति विहाय॥ सऊन पाखे जीववो, ते जीव्यो श्योमाय ॥७॥ किण मंदिर सूतो जश्, आशा बुब्ध निराश ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114