Book Title: Harichand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 23
________________ (१) जल वात॥पा॥राजाधि उदकी करी॥मे॥ कीधो निर्मल गात्त ॥ १२॥पा॥ मारि सगर्ना हरिणलीमे॥पाप कीयो परिहार ॥ पा॥ दंग कीयो शिर माहरे॥मे॥ एक लाख दिनार ॥पा॥१३॥बीजी ढाल पूरी कही ॥मे॥ गोडी राग मकार ॥ पा०॥ कनकसंदर मुनि वीनवे, ॥ मे ॥ सत्यवादि सुखकार ॥ १४ ॥ पा० ॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ राग सारंग मल्हार ॥ ॥ नणदलनी देशी ॥ ॥ नारि सुतारा वीनवे, सांजल प्राण आधा रहो ॥प्रीतम ॥ चिंता कीसी मनमें करो, केहना धन जमार हो ॥१॥जी॥चिं०॥ पाप गमायु आपणुं निर्मल कीg अंग हो ॥प्री० ॥ देशां तर हवे साधशु, अंग धरी उबरंग हो ॥प्री० ॥ ॥२॥जे शूरा अति साहसी, जे साचा सत्यवंत हो ॥ प्री० ॥ देशांतर तेहने किस्या, पग पग सुख अनंत हो ॥३॥ प्री०॥ जन्म कृतारथ जाणीयें, जे पातक वरजीत हो॥प्री०॥ सत्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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