Book Title: Harichand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 29
________________ ( २७ ) डानो हार ॥ सोजागी शिर सेहरो रे, अंग तो शणगार ॥ ३ ॥ रं० ॥ तुं मुक निमेष न वीसरें रे, ज्युं जल मीन जपंत ॥ तडफि मरुं हुं तुज विना रे, कमल नयण सुणि कंत ॥ ४ ॥ रं० ॥ लोटी जरि आगें धरूं रे, हुं बजं तोरि दास ॥ कि अगल उजी रहुं रे, वालम हिडे विमास || ॥ ५ ॥ रं० ॥ महेर करी मन मोहनां रे, मुने तेडो साथ || आगल करीय पधारजो रे, हित करी जाली हाथ ॥ ६ ॥ रं० ॥ हुं अरधंगी ताहरी रे, तुं मुऊ जीवन प्राण || अंगणी बाया समी रे, सांजल कंत सुजाण ॥ ७ ॥ रं० ॥ दीयर परघर सासरो रे, सवि उऊड मुऊ मन्न ॥ जो तुम संग सदा रहुं रे, तो वेलावल रन्न ॥॥॥ शील रहे किम माहरो रे, वेडमें वसतां वास ॥ वली ए ता पस पापीयो रे, करशे शील विनास ॥ ९ ॥ रं० ॥ प्राण हडे पण नां हडें रे, शील रयण समतोल ॥ एक शील नग उपरें रे, सहस तापस व्यो मोल ॥ ॥ १० ॥ रंग० ॥ तुम वेचे विक्रय करूं रे, तुज मारे For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International

Loading...

Page Navigation
1 ... 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114