Book Title: Harichand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 35
________________ (३३) नंत उवकाय, कनकसुंदर कहे तास पसाय ॥ ॥१६॥ इति श्री कनकसुंदरगणि विरचिते शील त्वाधिकारे नवरसवरणने करुणरसवर्णन नामा द्वितीयःखंमःसंपूर्णः ॥ ॥ अथ तृतीय खंडप्रारंनः॥ (दोहा) ॥ हवे त्रीजे खंमें प्रणमुं,सान्निध्यकारी देव ॥ सरुने श्रीशारदा, सहसकिरण प्रणमेव ॥१॥ राजछि रमणी सुता, देश हुरी परदेश ॥ श्रल हाणा वनमे चल्या, श्रीहरिचंद नरेश ॥२॥ जे दिन दत्त न आपणो, ते दिन मित्त न कोय ॥ कमलनदीने बाहिरो, दिणयर वैरी होय ॥३॥ राणी पग लोही फरे, पर खूचे पाय ॥ चरण सकोमल कमल दल, चंप्रवदनकुमलाय ॥॥ हो प्रीतम हो वालहा, हो तन जीवन प्राण ॥ खिण एक बाया विसमो, सोनल कंत सुजाण ॥५॥ करशुं कर ग्रहि कामिनी, कांधेकरी रोहिताश॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114