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(१५) लाल ॥४॥ च० ॥ दीधी त्रण प्रदक्षिणा, उत्त रासण गये लाल ॥च ॥ मुनिवर बंदि नावां निजमंदिर आये लाल ॥ ५॥ च ॥ समकित व्रत नृप श्रादरे, आनंद अंग न माये लाल ॥ ॥ चन ॥ अंग उमंगे महीपति, मन जरम गमा ये लाल ॥ ६॥ च ॥ नेद जणाये नारिकुं, स मकित महिमा लीने लाल ॥ च०॥ जन्म सफल अब जाणीयें, देही पावन कीने लाल ॥७॥च॥ दान महीपति देत हे, अब होत वधाई लाल॥ ॥ च ॥ घर घर गूडी उबले, निसाणे घाये लाला ॥ ७ ॥ च ॥ प्रथम खंम पूरो हुवो, ह रिचंद नरिंदा लाल ॥च॥ परमानंदनी संपदा, सुरलोक सुरिंदा लाल ॥ ए ॥ च ॥ श्रीनावड गह नूपति, मणिरत्न मुणिंदा लाल ॥ च० ॥ स गुरु श्रीउवकायजी, कर डं आणंदा लाल ॥१०॥ ॥ च ॥ कनकसुंदर शिष्य वीनवें, प्रनु चरण प साया लाल ॥ च ॥ चोथी ढाल रसाल ए, शृं गार रस गाया लाल ॥ ११॥ च० ॥ इति श्रीक
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