Book Title: Harichand Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 12
________________ ( १० ) वस्त्रघणा ने उघाडी रही ॥ १२ ॥ न जमे अन्न न पीवे नीर गुह्य न राखे निपट अधीर ॥ पर न रशुं परउप गारणी, पुत्र जणे पण ब्रह्म चारिणी ॥ ॥ १३ ॥ फल लागां पण वंध्या सही, प्राण व कहो ते कुण कही ॥ ति कारण मुऊ मन संदेह, कहो प्रीतम कुण नारि तेह ॥ १४ ॥ रा जवाक्यं ॥ नवमंगल रूपी ते नारि, कहीये सुख करणी संसार ॥ रमणीसुर नर रलियामणी, वारु सुंदर सोहामणी ॥ १५ ॥ लीलावंती मोहन गारी, पंच वरण धुरि र नारि ॥ एम अनेक गुणनेद प्रकाश, पंच विषय सुख लील विलास ॥ १६ ॥ राजा राणी विलसे, जोग, जमर केतकी जिम संयोग ॥ मनरंगें सुख लीला रमे, एक निमेष वि रहो नवखमे ॥ १७ ॥ कंत तो मन मानी इसी, नयन मांडेलि की की जिसी ॥ कहे तिका विध राजा करे, जीवन प्राण जिसी यादरे ॥ १७ ॥ सोहाग पिसाची ते नार, जे मनमानी निज न रतार ॥ सबल शील जिमांहे लही, तिपशुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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