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परमात्मा का भयावह रूप...295
___ गीता के लेखक संजय हैं या व्यास? / कृष्ण और अर्जुन के बीच मौन संवाद / संजय ने धृतराष्ट्र से उसे कहा / व्यास ने केवल लिपिबद्ध किया / अनेक शास्त्र व्यास के नाम पर हैं / दिव्य-चक्षु क्या सिद्धावस्था के पूर्व भी मिल सकता है / नहीं / सिद्धावस्था और दिव्य-चक्षु एक ही बात / दूर-दृष्टि, दूर-श्रवण मन की क्षमताएं हैं / मन की सूक्ष्म शक्तियों में उत्सुक व्यक्ति अक्सर धार्मिक नहीं होते / दूसरों को प्रभावित करने का रस ही संसार है / दूर-दृष्टि और दिव्य-दृष्टि में फर्क / दृष्टि का अर्थ है : दूसरे को देखने की क्षमता / दिव्य-दृष्टि अर्थात समस्त दृष्टियों से मुक्त होकर द्रष्टा मात्र का रह जाना / लगता है : सब कुछ मेरे भीतर हो रहा है / स्वामी राम को जब पहली दफा समाधि का अनुभव हुआ, तो रोने-हंसने-नाचने लगे / कहाः सब चांद-तारे मेरे भीतर घूम रहे हैं / विनम्रता जानने की शर्त भी है और जानने का परिणाम भी है / अर्जुन अति विनम्र है / मेरा अनुभव-ऐसा दावा नहीं करता / मत और सत्य का फर्क / महावीर का स्यातवाद / हर कथन में सत्य का कुछ अंश तो है ही / अधिक लोग तो चार्वाकवादी ही हैं / नीत्शे ने कहाः ईश्वर मर गया है और अब मनुष्य स्वतंत्र है / चार्वाक की बातें मन को बड़ी प्रीतिकर / ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत / महावीर के अनुसार चार्वाक की बातों में भी थोड़ा सत्य तो है / आग्रह से अहंकार को बल/धर्म परिवर्तन के लिए मतांध आग्रह जरूरी / दूसरे को बदलने की चेष्टा राजनीति है / स्वयं को बदलने की चेष्टा धर्म है / आप ही जानने योग्य परम अक्षर हैं / विज्ञान की बड़ी उपयोगिता है / ईश्वर को जानने की कोई उपयोगिता नहीं है / फिर अर्जुन ने ईश्वर का तपायमान अग्निरूप देखा / जीवन जोड़ है-विपरीत द्वंद्वों का / केवल एक को चुनना संभव नहीं है / खाई और शिखर साथ-साथ हैं / ओल्ड टेस्टामेंट में ईश्वर का कठोर रूप / न्यू टेस्टामेंट में ईश्वर का प्रेम रूप / गुरजिएफ में परमात्मा के दोनों रूप प्रकट हुए थे / पूरे कृष्ण को स्वीकार करना मुश्किल है / ईश्वर के तीन रूप—ब्रह्मा, विष्णु, महेश / जन्म, धारण और विसर्जन / मृत्यु-भय के कारण शिव की बड़ी पूजा / गणेश की पूजा-ताकि वे विघ्न न करें / मृत्यु की अनिवार्यता का बोध / पतझड़ के पीछे छिपा है वसंत / अलौकिक और भयंकर एक साथ / भय के कारण की गई पूजा-प्रार्थना रुग्ण है | आत्मा की खोज अमृत की खोज है / देवता भी मिटने से डरते हैं / जहां वासना-वहां अहंकार / जहां अहंकार-वहां मिटने का डर / इंद्र का सिंहासन डोलना / मिटने का भय-आखिरी सीमा तक / भीतर-बाहर-शून्य चैतन्य / इस परम एकता में भय तिरोहित।
अचुनाव अतिक्रमण है ... 313
अस्तित्व विपरीत द्वंद्वों से मिल कर बना है, तो परम सत्य इन द्वंद्वों का जोड़ है या कि इनके अतीत कोई तीसरी सत्ता है? / संसार है-एक द्वंद्वात्मक तनाव की अवस्था / द्वंद्व के शांत होने पर अद्वैत ब्रह्म में प्रवेश / ब्रह्म, जीवन और मृत्यु के पार है / हीगेल और मार्क्स का अधूरा द्वंद्वात्मक विकासवाद | चुनावरहित स्वीकार में द्वंद्वों का अतिक्रमण / अचुनाव में जीने वाला-संन्यासी / जो चुने, वह गृहस्थ / सुख चाहा, तो दुख भी आएगा / फूलों की अपेक्षा की, तो पत्थर भी पड़ेंगे / जो हो, उसके लिए राजीपन / चुनावरहितता संन्यास की गुह्य साधना है / चुनावरहित होने के दो मार्ग-योग और भक्ति / भक्त का समर्पण और स्वीकार भाव / अर्जुन का मार्ग है-प्रेम, भक्ति / आप गीता की इतनी लंबी व्याख्या क्यों कर रहे हैं? / गीता तो स्वयं में पर्याप्त है / लेकिन आप बहरे हैं / बुद्ध हर बात को तीन बार कहते / सुनने के लिए भीतर निर्विचार दशा चाहिए / प्राचीन गीता को युगानुकूल नए प्राण देना / शब्दों पर जम गई धूल को झाड़ना / नए मन के लिए नए शब्द / पांच हजार साल पहले मन का आधार था श्रद्धा / आज मन का आधार है संदेह / विज्ञान है संदेह की कला / धर्म की यात्रा में श्रद्धा अनिवार्य है / आज के मन को श्रद्धा की ओर मोड़ना अति कठिन है / श्रद्धा को अब संदेह के मार्ग से लाना होगा / संदेह को काटने के लिए तर्क और संदेह का ही उपयोग / नया अनूठा प्रयोग / नई पीढ़ी सोच-विचार वाली / संदेह कर-कर के संदेह करने में असमर्थ हो जाना / दौड़-दौड़कर थक गई बुद्धि-फिर विश्राम / अर्जुन ने देखा, विकराल रूप / हमने परमात्मा के केवल सुंदर रूप पर