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" सचित्र खास अक. Ek
[वर्ष ८ आपके सब शिष्योंमें अधिक प्रसिद्ध हैं। आप संस्कृत नहीं जानते,पर भाषाके अच्छे और पं. पन्नालालजीके द्वारा जो कुछ जैन पंडित हैं । आपने अन्यमति सैकड़ों ग्रन्थोंसमाजकी सेवा हुई है वह पं. चुन्नीलाल- को देखा है और यही वजह है कि जहां जीकी कृपाका विशेष फल है । पंडितजीकी आप व्याख्यान देते हैं वहां अन्यमती ग्रंअध्यक्षतामें मुरादाबादमें 'जैन विद्यावर्धिनी' थोंका बहुत आधार देते हैं । आपने "लसभा भी चलती थी, उस सभाकी तरफसे क्ष्मिविलास" नामक एक ग्रन्थ भी बनापं. पन्नालालजी बाकलीवालने "जैनहितैषी" या है उसमें आपने सैंकडों अन्यमती ग्रनामक मासिकपत्र निकालाथा। अब वहीं न्थोंका आधार देकर जैनधर्मको उत्कृष्ट "जैनहितैषी " पं. नाथूरामजी प्रेमीके बतलाया है । आप अच्छे कविभी हैं और संपादकत्वमें बम्बई से निकलता है। पंडि- आपको अपनेही बनाये हुए छन्द, सवैये, तजी जातिके पंच भी थे । मुरादाबाद जि- भजनों वगैरह बहुत याद है और स्थानोंलेके खंडेलवाल जैनिओंसे दुसरे जिलाके स्थान पर जाकर बहुत अच्छा धर्मोपदेश खंडेलवाल जैनिओंका संबंध नहीं होता देते हैं । था, इससे विवाह संबंधमें बड़ी दिक्कत (२७-२८) सेठ धनश्यामसा और सेठ, रहती थी। आनंदका विषय है कि पंडि- दयाचंदजीसा-बडवाहः-आपका जन्म तजी और दो तीन भाईओंके उद्योगसे सं. १८८७ में हुआ था । तेरह वर्षकी अमुरादाबाद जिलेके खंडेलवाल जैनिओंका वस्थासे आपने व्यापार करना प्रारंभ किसम्बन्ध आगरा, अलीगढ, मथुरा, जयपुर, या था। आपने गल्ला, अफीम, कपास, देहली आदि नगरोंके भाईओंमें होने लगा। तिल्ली, सराफी, जगातका ठेका, नावका हम यही चाहते हैं कि पंडितजीके अमर ठेका आदि कइ व्यापार किये थे। जब आप आत्माको शान्ति प्राप्त हो और आपका बाजारमें खरीदीको निकलते तो दुनियाके पौत्र नेमिचन्द्र भी आपके जैसी योग्यता प्रसिद्ध व्यापारी राळी ब्रधर्सकोभी खरदिीमें प्राप्त करें।
हाथ टेका देना पडता था । आपका प्रचंड (२६)श्रीमान पं. लक्ष्मीचन्द्रजी-लश्कर:- व्यापार देखकर डी. टी. एसने आज्ञा दे आपका ज्यादे परीचय हमको नहीं मिला दी थी कि पहले सेठ घनश्यामसाजीका माल परंतु जितना प्राप्त हुआ है वह प्रकट रवाना किया जावे पीछे दूसरोंका । आपका करते हैं।
प्रभाव सर्व साधारण पर था और पंचायितीआपका जन्म खंडेलवाल जातिमें हुआ है। योंके झघड़े भी आप तोड डालते थे। बाल्यावस्थासेही आपको विद्याका प्रेम है। आपका धर्मप्रेम अगाध था । सं.१९५१ में