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वर्ष ८ ]
शिला- लेख -
सचित्र खास अंक. इसमें एक अन्तर्मन्दिर तथा सहित एक सभा मण्डप है । इस मंदिरमें श्री १००८ पार्श्वनाथ तीर्थंकर की लगभग ढाई पुरुष प्रमाणकी एक खड़ी सप्त फणामण्डपमण्डित मनोज्ञ कृष्णवर्णकी मूर्ति है । इस मंदिर के सामने एक विस्तृत चबूतरेके साथ ऊंचा मानस्तंभ है ।
आनेपर एक छोटासा रमणीय तालाव भिलता है। इसका स्वच्छ जल और भ्रमरानुरंजित विकसित कमल इसकी शोभा दूनी बढ़ा रहे हैं । यात्रि- गण इसमें अष्टक वो कर दर्शन करने जाते हैं । पर्वत के मंदिरों के चारों तरफ से किलेकीसी चहारदिवाली दौड़ायी गयी है । दक्षिण द्वारसे इस प्राकार में घुसने पर अनेक मंदिरों का दर्शन होकर अंतःकरण आनंदित हो जाता है। प्रथम ही मानस्तंभ तथा इसके समीप मैसोर-नरेश-द्वारा सू-संरक्षित और प्रस्तर प्राचीरावण्ठित एक शिलालेख है, जो आज तक भारतवासीयों को यह बता रहा है कि जब बारह वर्षका दुर्भिक्ष पड़ा था तो भद्र बहुस्वामी और इनके शिष्य चंद्रगुहाने मुनिसंघों के साथ रह कर समाधि-मरणसहित इसी पर्वतपर अपनी विनश्वर देहको छोड़ा है । यह शिलालेख बहुत दिनों तक किसीसे परिचित नहीं था और लोग इसके महत्वसे बहुत दिनोंतक वञ्चित रहें; किन्तु पुरातत्ववेत्ता मि. ल्युईस राईस साहेबने अपरिमेय परिश्रम कर इसको प्रकाशित कर भारतवासियों को और विशेषकर जैनियोंको एक प्राचीनतम ऐतिहासिक घटनासे परिचय कराया ।
मन्दिरों का क्रम ।
१ - उपर्युक्त प्राचीन शिलालेख के उत्तर भागमें श्री १००८ पार्श्वनाथ तीर्थंकरका पूर्वाभिमुख एक विशाल चैत्यालय है ।
चंद्रगुप्त वस्ती (मंदिर) ।
२- ३. इस मन्दिरके उत्तर तरफ पासहीमें महाराज अशोकद्वारानिर्मित चंद्रगुप्त वस्ती (चैत्यालय ) है । यह वस्ती बहुत विस्तृत होने की वजहसे अन्धकारमय है । इसीलिये कन्नडमें लोग इस ' कत्तलवस्ती' भी कहते हैं । इस वस्तीमें दो दालान हैं । इन दोनों दालानों में भी प्रतिमा विराजमीन की गई है । ऊपरका दालान बहुत लम्बा चौड़ा है । इसमें बीस खंभे लगे हुए हैं । भीतरका कुछ भाग प्राचीन शिल्पकलाका नमूना दिखा रहा है । अन्तर्मंदिर में सिंहासनपर श्री १००८ भगवान् आदिनाथ तीर्थंकरकी प्रतिमा विराजमान है । प्रतिमा के पीछेका भामण्डल आजभी प्राचीन शिल्पकलाका आदर्श हो रहा है। प्रतिमा के आगे यक्ष और यक्षिणीकी बड़ीही मनोज्ञमूर्ति है ।
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नीचे के दालानका मन्दिर दक्षिणाभिमुख है। इस मन्दिरके तीन भाग हैं। मध्य भाग में कायोत्सर्गस्थ श्री पार्श्वनाथ स्वामीकी एक प्रतिमा है । इसके दक्षिण ओर में पद्मावती