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» सचित्र खास अंक. १९
वर्ष ८] 000000000000000000000४ गर्जते जल राशिकी उठती हुई ऊंची लहर। कर्मवीर
आगकी भयदायिनी फैली दिशाओंमें लवर।
* है कँपा सकती कभी जिसके कलेजेको नहीं। 400000000000000000000% भूल कर भी वह नहीं नाकाम रहता हैं कहीं॥
देखकर जो विघ्न बाधाओंको घबराते नहीं। चिलचिलाती धूपको जो चांदनी देवे बनो भाग्य पर रह करके जो पीछे हैं पछताते नहीं॥ काम पड़नेपर करें जो शेरका भी सामना।। भीड पड़ने परभी चंचलता जो दिखलाते नहीं। हँसते हँसते जो चबा लेते हैं लोहेके चना। काम कितनाही कठिन हो परजो उकताते नहीं॥ है कठिन कुछ भी नहीं जिनके है जीमें होते हैं यक आनमें उनके बुरे दिन भी भले ।
___ यह ठना। सब जगह सब कालमें रहते हैं वह फूले फले॥
__कौनसी है गांठ जिसको खोल वह सकते नहीं।
थकते नहीं।
आज जो करना है कर देते हैं उस को आजही। ठीकरोंको वह बना देते हैं सोनेकी डली । सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही॥ रंगको करके दिखा देते हैं वह सुन्दर कली ।। - मानते जी की हैं सुनते हैं सदाँ सबकी कही। वह बबूलों में लगा देते हैं चम्पेकी कली। जो मदद करते हैं अपनी इस जगतमें आप ही॥ काकको भी वह सिखा देते हैं कोकिल काकली।। भूलकर वह दूसरेका मुँह कभी तकते नहीं। ऊसरोंमें हैं खिला देते अनूठे वह कमल । कौन ऐसा काम है जिसको वह कर सक्ते नहीं। वह लगा देते हैं उकठे काठमें भी फूलफल ॥
जो कभी अपने समयको यों बिताते हैं नहीं। कामको आरम्भ करके यो नहीं जो छोड़ते। काम करनेकी जगह बातें बनाते हैं नहीं ॥ सामना करके नहीं जो भूल कर मुँह मोड़ते ॥ आज कल करते हुए जो दिन गँवाते हैं नहीं। जो गगनके फूल बातोंसे वृथा नहीं तोड़ते। यत्न करनेमें कभी जो जी चुराते हैं नहीं॥ सम्पदा मनसे करोड़ोंकी नहीं जो जोड़ते ।। बात है वह कौन जो होती नहीं उनके किये। बन गया हीरा उन्हींके हाथसे हैं कारबन। वह नमूना आप बन जाते हैं औरोंके लिये॥ काँचको करके दिखा देते हैं वह उज्जल रतन।।
गगनको छूते हुए दुर्गम पहाड़ोंके शिखर। पर्वतोंको काटकर सड़कें बना देते हैं वह । वह घने जंगल जहां रहता है तम आठों पहर॥ सैकडों मरुभूमिमें नदियां बहा देते हैं वह॥