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[ वर्ष ८
ॐ सचित्र खास अंक. k अतीव आवश्यकता है।
हैं, पौद्गलिक पदार्थोंकी चर्चामें समय नटेक०-( बीचही में ) भाई साहेब, ही बिताना चाहते हैं इत्यादि । अब यह तो सब कुछ ठीक है, मैं मानता हूं, यदि इनसे भी पूछा जाय कि तुम सच परंतु इन बातोंसे और हिन्दीसे क्या बतावो, सामायिकमें किसका ध्यान, पूजासम्बन्ध ?
____ में किसका कीर्तन, स्वाध्यायमें किसका जय०-जल्दी न कीजिये । मैं आपको विचार और धर्मचर्चामें किसका समर्थन करते यही सम्बन्ध बताता हूं, सुनिये ।जब कोई हो ? तो उत्तर विषम हो जायगा । मैं नवीन आविष्कार सुनने में आता है, तो भी इसका उत्तर यहां न बताऊंगा। हमारे भारती भाई चटसे कह उठते हैं, आप स्वयम् अपने उपरसे बिचार लीजिये। कि यह सब विद्या हमारे शास्त्रों- तात्पर्य-प्रमादी कायर पुरुष अपनेको निर्दोमें भरी पड़ी है। जिस बातको आज ष सिद्ध करनेके लिये ऋषियोंकी ओट उन्होंने पाया है, उसे हमारे महर्षि हज़ारों लेकर अपना दोष उनपर मढ़देना चाहते वर्ष पहिले लिख गये हैं। हमारे पूर्वज भी हैं । हाय भारत ! इसीसे तू आरत हुआ तो पहिले विमानों में चलते थे इत्यादि, गारत हो रहा है। परंतु यदि उनसे पूछा जाय कि मान लो टेक०-भाई, आप तो और और बातें शास्त्रपुराणोंमें सब कुछ लिखा है और कहते हैं। अपने विषयपर चलिये क्योंपूर्वज ऐसा करते भी होंगे, परंतु तुम भी कि मुझे सबेरेकी गाडीसे कलकत्ते कुछ करके बता सक्ते हो? बस, इसी जाना है। प्रश्नसे मानो उनकी नानी मर गई हो जय०-घबराइये नहीं, जाना तो है ही, ऐसा मुंह उतर जायगा । देखा " दादाने परंतु कुछ साथ भी ले जाना है । अच्छा घी खाया था, मेरा मुंह सूंघ लो" जैनियोंको सुनिये-मुझे अभी इससे कुछ वादविवाद देखो, जरा येभी क्या कहते हैं कि हमारे नहीं है कि हमारे देशमें कलाकौशल्याता आचार्योंका कथन है कि-विषय कषायोंको थी या नहीं । मान लो कि थी; परंतु इस कम करो, अधिक तृष्णा मत करो, परि- समय तो नहीं हैं और कहीं हो भी, तो ग्रह कम करो इत्यादि । इसीसे हम लोग वह इतनी बहुमूल्य है कि सुनते ही शिअपने बापदादोंसे चला आया हुवा धंधा रमें पीड़ा (दर्द) होने लगता है, तब ऐसा करके आजीवका चला लेते हैं और शेष कौन होगा जो अल्पमूल्य की दिखाउ समय धर्मचर्चा, स्वाध्याय, पूजा व सामा- चीज न लेकर बहु मूल्यकी भद्दी खरीदेगा? यिकमें बिताते हैं। आत्मिकविचार करते कदाचित् तुम्हारे जैसे कुछ उंगलियोंके