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> सचित्र खास अंक. Ek
[ वर्ष ८ विदेशी नवयुवक वहांसे बहुत थोड़ी महाराजके ही मुंहमें रहती है या पुराणों अवस्थावाले हृष्टपुष्ट हमारे यहां आकर व शास्त्रोंके पत्रोंमें बंधी रहती है। दूसरी हमारे उन विषयों के आचार्य बनते हैं, वात जैनियों के लिये हिन्दी भाषाके देश जिनको सीखने में हमारी आयु ही पूर्ण भाषा (प्रचार) होजानेसे विशेष लाभदायक हो जाती है । स्वास्थ्यकी तो कहना ही यह होगी कि जैनियोंके शास्त्रोंका उल्था क्या है ? इसका क्या कारण है ? भाई, (भाषान्तर)प्रायः अधिकतर हिन्दी भाषा व केवल एक यही है, कि सब प्रकार शास्त्र हिन्दी लिपिमें ही हुवा है। जनियोंके पूजा पाठ उनकी मात (देश) भाषामें हैं। उन्हें आदि भी हिन्दी भाषामें ही प्रायः अधिक है, भाषा सम्बन्धी श्रम तो करना ही नहीं पड़ता तथा जैनी अधिकतर हिन्दी बोलते भी है और देशमें कलाकौशल्यके अनेक हैं, इसलिये इस दृष्टिसे भी हिन्दी भाषा अनेक कार्यालय खुल रहे हैं, सो
न खेलते हु।
ही के प्रचारकी आवश्यकता विशेष रुपसे कूदते ही कितनी बातें सीख लेते हैं। यही प्रार्थना है और हमारे भारती भाइयों
है । श्रीजी इस कार्यमें हमें सफलता देवें शेष किसी विश्वविद्यालय द्वारा शिक्षा को सद्बुद्धि देवें ताकि वे परस्परकी खेंचाप्राप्त करके आचार्य बन बैठते हैं। यहां तानी छोड़ कर हिन्दीको ही सर्वस्व मानः न तो देशभाषा (हिन्दी) में वे पुस्तकें ही कर अपना लेवें।। हैं न ऐसे कार्यालय ही हैं, तब कहिये . टेकo-भाई, सत्य है, मेरी भी सम्झमें कैसे सीखें ? ठीक, वही कहावत हो रही यह बात आ गई। यथार्थमें एक (हीहै कि "न राधा नाचें न नव मन तेल न्दी)भाषासे देशका, धर्मका व व्यापारादिका जले" न पुस्तकें देश भाषामें
बहुत अधिक सम्बन्ध है । मैंभी इस विषय बनें, न
में यथासाध्य प्रयत्न करुंगा। अच्छा, अब देशवासी उनसे परिचित हो, इसीलिये रात्रि बहत हो गई है, फिर इक्का न मिलेभाई, देश भाषाका हिन्दी होना और हिन्दीमें गा, प्रातःकाल जाना भी है, इसलिये क्षमा ऐसी पुस्तकोंका होना अत्यन्त आवश्यक हो कीजियेगा, जाता हूं । (उठ कर) जुहारु । रहा है। मुझे तो इन विद्यार्थियोंका यह प्रस्ता- जयचन्द-ठहरिये, मैं भी चलता हूं, आव बहुतही प्रिय व लाभदायक प्रतति पके साथ कलकत्तेकी शैर कर आऊंगा और हुवा । यथार्थमें दूरदर्शितासे काम लिया
वहां पर मौजीलालसे भी मिल आऊंगा। गया है । जब मनुष्य संसारी चिंतावोंसे कु
____ बस, इस प्रकार बातचीत करते हुवे
दोनों मित्र आनन्दवाटिकासे जैन बोर्डिंग छ रहित होता है अर्थात् पेटमें दाना पहुं
हाउस-प्रयागसे प्रस्थान कर गये । चता है तब धर्म, कर्म, न्याय, नीति सब
मा. दीपचन्द परवार, सुप्ररिन्टेन्डेन्ट दीखने लगती है, अन्यथा सब उपदेशक
सु. दि. जैन बोर्डिंग हाउस-प्रयाग