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MO सचित्र खास अंक. २९.
[वर्ष ८ . जयचन्दः-भाई, बिरादरीमें गिदौड़ा बस् है ! और धर्मशास्त्र संस्कृतमें हैं सो (लहणा) बांटा जाता है, उससे पता लग उसे व राजभाषा अंग्रेजी । बस इन्हींसे जाता है-गिन्ती हो जाती है। कुल काम निकल सकता है। व्यर्थको कहीं
टेकचन्दः-अच्छा, यह बात रहने दो हिन्दी, कहीं नागरी आदिके झगड़ोंमें और बतावो कुछ विशेष बात हुई है ? ये माथा पीटनेमें क्या रक्खा है ? बात तो प्रायः सभी जगह देखी जाती है। जय०-भाई साहेब ! आपने कहा सो __ जय०-जी हां, यहांपर सुगन्धदशमी सब ठीक है, परन्तु आप जल्दी न करके (रविवार) को दोपहरके समय इसी इस पर विचार करेंगे तो इस प्रस्तावकी बोर्डिंग के वाचनालयमें "जैन भ्रातमंडल, शतमुखसे प्रशंसा किये बिना न रह (जो कि अनुमान एक वर्षसे यहां के छात्र- सकेंगे। आजकल पाश्चमी हवा चल गणोंने खोल रक्खा है) का जल्सा था। 3. रही है । लोग भी इसीके झोकमै झुक समें आवश्यक प्रस्तावोंके अनन्तर 'हिन्दी रहे हैं । हमारी आवश्यकताएं और इच्छाएं,भाषाकी उन्नति कैसे हो', इस विषय पर दिनोंदिन बढ़ती जाती हैं। यह स्वाभाविवेचन हुवा । सुनते ही अनेक प्रकारके
- विक बात है, कि यह अनादिकाल विषयविचारोंका संचार हृदयमें होने लगा; इतना
लोलुपी जीव जब अपने साम्हने अपने ही ही नहीं, उपस्थित सदस्योंने यह प्रस्ताव
द्रव्यसे अन्य किसी जीवको संसारिक भी पास कर दिया कि-प्रत्येक सदस्य ।
" पदार्थोंका भोगोपभोग करते देखता है, तो कमसे कम एक पुस्तक हिन्दीमें चाहे तो उसे भी देखादेखी स्वयं भोगनेकी इच्छा अपने ही मनसे, चाहे किसी अन्य भाषासे हो उठती है, और फिर वह इच्छा इतनी भाषान्तर करके ऐसी लिखे, जो वर्तमान प्रबल हो उठती है, कि कभी कभी समयानुसार समाजको उपयोगी हो । वाह! मर्यादाको भी उलंघन कर बैठती है। क्या ही अच्छा प्रस्ताव है!
ऐसी दशामें समाजके नेता समाजको टेक-प्रस्ताव तो किया सो ठीक है, गिरते हुवे देख कर यथातथा उन्हें स्थिर परन्तु इससे प्रयोजन क्या सिद्ध हुवा ? करनेका प्रयत्न करते हैं । यद्यपि सर्वोत्तम धर्मवृद्धि व अर्थवृद्धि इससे क्या हुई ? तो यही है, कि यदि हो सके तो सबको आपको यह इतने महत्वका क्यों जान वैराग्यरुपी उपदेश सुनाकर इन विषरूप पड़ा ? आदमीको अपने विचारों, हिसाब विषयाभिलाषावोंसे विमुख करके सच्चे व इतिहासादि समाचारोंको कालान्तर न सुखका मार्ग बताया जाय, परंतु ऐसा भूलने व चिट्ठीपत्री आदि लिखने पढ़- होना एक प्रकारसे असंभव ही सा दिखता नके लिये किसी भी एक भाषाका जानना है, क्योंकि चतुर्थकाल (चौथा आरा) में