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व्याल न करना चाहिए। क्योंकि
६८ - सचित्र खास अंक.44
. [ वर्ष ८ सिवाय लोढामलके और किसीसे न हो ऐसा देखना चाहिये कि सिवाय उसके सकेगा। क्योंकि उसकी तलाश में बहुत घरमें दूसरी कोई न होवे ताकि मेरी बेटी सी लड़कियें रहती हैं । और रातदिन हीका सबके ऊपर हुकम चले, और फिर उसे सिवाय इसके और कोई काम भी जिसमें अपनी भी दाल गल सके । अपने नहीं है। इसलिये यही अच्छा है कि पास भी बहुतसा धन आ सके । पांचों . सवेरे लोढामलको बुला लेना चाहिए "। उंगलिया घीमें ही रहें । अबके अपने
प्रिय पाठको ! रतनचंदके दिलमें बहुत पाससे रुपया भी बहुत उठ गया है । कुछ समय तक कुबुद्धी और सुबुद्धीका द्वंद मचा रुपया पैसा हाथ लग जाय तो अपना भी रहा । पर अखीरमें कुबुद्धीहीकी जीत बिगड़ा हुआ खेल बन जाय । इसलिये रही। सच है "आदमी पर जितना ज- कोई ऐसा ही धनवान वर तलाश करना ल्दी बुरी बातका असर पड़ता है उतना चाहिए । पर यह भी ध्यान रखना चाहिए जल्दी अच्छीका नहीं" । आखिर रतनचं- कि कहीं पंच न सुन लें, नहीं तो बिराददने पाप करनेमें कमर बांध ही ली और रीमें न रहने देवेंगे। नहीं जी ! इसका सवेरे ही अपने आदमीको लोढामलको बुलाने भेज ही दिया । हाय ! उसे कि
बड़े आदमीके होनेसे कोई भी न बोलैगा। सीने नहीं समझाया पर उसने अपना मतलब तो किसीसे कहा ही न था। समझाता
और जिसमें एक रोज़ उनको भी मिठाई कौन और दूसरे वह एक धनवान आदमी
जिमा देवेंगे । वर बड़ा आदमी तथा धनथा । जो कोई उसे समझाता वह पहले
" वान होनेसे लड़कीको भी सुख मिलेगा
१ उल्लू बनता । आखिर उसने अपने मनमें और अपनी भी खूब पटैगी । अच्छा, तो विवाहकी ढानही ली। देखिये क्या होता है? अब लोढ़ामलके पास चलना चाहिए और
उससे अपनी सारी रामकहानी कहनी बड़े दुःखकी बात है। चन्द्रकला भी चाहिए । क्योंकि उसकी तलाशमें कई अब ब्याहने योग्य हो गई। अब इसके लड़के होंगे। व्याहके वास्ते रुपये चाहिए । पहले स्त्रीका ऐसा विचार कर किसनचंद लोढ़ामल कारज करके चुके थे। अब व्याह करो। के घर पर पहुंचा और आवाज़ दी-"लोखैर, करना ही पड़ेगा। अब कोई वरकी ढामलजी", "ओ लोढमलजी" "लोढ़ामतलाश करनी चाहिए। वर हो चाहे लजी हैं क्या ?" जितना बड़ा पर धनवान होना चाहिए, लोढामक:-कौन है ! भाई ? ताकि वह कुछ दे सके ! और घर भी किसनचंद:-अजी मैं हूं किसनचंद ।