Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रवचन- २५ साधुधर्म की पसंदगी कर लो : फिर भी गृहस्थ जीवन में धर्म का पालन हो तो सकता ही है। बहुत अच्छा पालन हो सकता है। यदि मनुष्य जाग्रत बना रहे तो बढ़िया धर्मपालन कर सकता है। यदि आप में संसार का त्याग करने की क्षमता नहीं है, संसार के सुखों के प्रति वैराग्य पैदा नहीं हुआ है, तो आप गृहस्थजीवन जी सकते हैं और जीवन में धर्म की आराधना कर सकते हैं। आप अपनी क्षमता को सोच लें। अंदाजा लगा लें । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेरा तो आप से यह कहना है कि यदि आपके हृदय में साधुधर्म का पालन करने का उल्लास और उत्साह जाग्रत होता हो तो आप साधुधर्म को ही पसंद करें! कहिए, क्या होता है हृदय में ? सभा में से : क्षणिक उल्लास तो हो जाता है कि साधुधर्म स्वीकार कर लें.... परन्तु यहाँ से जब घर जाते हैं तब वह भावना जिन्दा नहीं रहती! १. दुःखमूलक वैराग्य । २. मोहमूलक वैराग्य । ३. ज्ञानमूलक वैराग्य । महाराजश्री : क्षणिक उल्लास बार-बार जगता रहेगा तो शाश्वत उल्लास एक दिन जाग्रत हो जाएगा! साधुधर्म प्यारा लगे तभी उल्लास जगता है ठीक है क्षणिक तो क्षणिक ! जो वस्तु प्रिय लगी, वह पाने की जब क्षमता आयेगी, आप उसे पा लोगे! साधुजीवन प्रिय लगा है तो जिस दिन प्रबल उत्साह जगेगा, आत्मवीर्य उल्लसित होगा तब आप साधु बन ही जाओगे ! साधुजीवन के लिए चाहिए संसार के प्रति वैराग्य । संसार के सुखों के प्रति वैराग्य! वैराग्य भी ज्ञानमूलक चाहिए । वैराग्य भी तीन प्रकार का होता है ! गृहस्थजीवन में अनेक प्रकार के दु:ख हैं, जैसे कि रहने को घर नहीं है, मनपसन्द पत्नी नहीं मिल रही है, पत्नी है तो कर्कशा है, संतान अच्छी नहीं हैं, शरीर में रोग उत्पन्न हो गये हैं, धन नहीं मिल रहा है, पूरा भोजन नहीं मिल रहा है, दुनिया में इज्जत नहीं रही है.... इन सब दुःखों से संसार के प्रति वैराग्य हो जाय और साधु बन जाने का सोचें.... तो यह दुःखमूलक वैराग्य है। ऐसा वैराग्य काम का नहीं । साधुजीवन इस प्रकार के वैराग्य से स्वीकार नहीं करना चाहिए। चूँकि दुःखों से घबराकर साधु बननेवाला व्यक्ति साधुजीवन के कष्टों को सहन नहीं कर सकता है और जब उसको सुख मिल For Private And Personal Use Only

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