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निमीलन अर्थवाची 'अच्छिवडण' शब्द संस्कृत के 'अक्षिपतन' शब्द से निष्पन्न हो सकता है, तथापि संस्कृत में इस अर्थ में अप्रसिद्ध होने से इसे देशी में निबद्ध किया है । '
'अहिहाण' का अर्थ है – वर्णना, प्रशंसा । यह संस्कृत के अभिधान शब्द से व्युत्पन्न किया जा सकता है, किन्तु जो व्यक्ति संस्कृत से अनभिज्ञ हैं, स्वयं को प्राकृत के पंडित मानते हैं उनका ध्यान आकृष्ट करने के लिए ऐसे अनेक शब्दों का संग्रहण किया है । संस्कृत में 'अभिधान' शब्द वर्णना -- प्रशंसा के अर्थ में प्राप्त नहीं है ।
उल्लिखित संदर्भों से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि देशी शब्दों के संग्रहण में आचार्य हेमचंद्र बड़े सतर्क एवं जागरूक रहे हैं । इस विषय में उनकी दृष्टि बहुत स्पष्ट एवं विशाल थी, चिंतन युक्तियुक्त एवं गंभीर था । अन्य आचार्यों द्वारा देशी रूप में स्वीकृत होने पर भी जहां आचार्य हेमचन्द्र को कोई शब्द युक्ति संगत नहीं लगा उसे संस्कृतसम या संस्कृतभव कह कर छोड़ दिया है । जैसे
'अच्छलं अनपराध इति संस्कृतसमः । ' अच्छोडणं मृगया, अलिंजरं कुण्डम्, अमिलायं कुरण्टककुसुमम्, अच्छभल्लो ऋक्षः' इत्यपि संगृह्णन्ति । तत् संस्कृतभवत्वादस्माभिर्नोक्तम् ।
शब्दों के यथार्थ अर्थ को पकड़ना एक कठिन कार्य है । उसमें देशी शब्दों का सही ढंग से निर्णय तथा अर्थ-निर्धारण तो और भी कठिन कार्य है । देशीनाममाला में आचार्य हेमचन्द्र ने देशी शब्दों के वाचक जिन संस्कृत शब्दों का प्रयोग किया है, उनके अनेक अर्थ होते हैं, हो सकते हैं । उनको कौनसा अर्थ अभिप्रेत था - इसका प्रसंग या संदर्भ के बिना निर्णय करना अत्यंत कठिन है । यही कारण है कि देशीनाममाला के अनेक शब्दों का भ्रम - पूर्ण एवं अयथार्थ अर्थं भी कर दिया गया है । उदाहरण के लिए रामानुज स्वामी की शब्द सूची द्रष्टव्य है । उसमें कई शब्दों के अर्थ विमर्शणीय एवं संशोधनीय हैं । जैसे—---
आचार्य हेमचन्द्र ने ‘आउस' शब्द का संस्कृत अर्थ 'कूर्च' दिया है । कूर्च शब्द के दाढ़ी और कूंची — दो अर्थ होते हैं । रामानुज ने इसका अर्थ कूँची ( Brush ) किया है, किन्तु इसका वास्तविक अर्थ दाढ़ी होना चाहिए । इसके सही या गलत अर्थ का निर्णय आचार्य हेमचंद्र द्वारा प्रस्तुत इस उदाहरण गाथा से हो सकता है
१. देशीनाममाला १।३६ वृत्ति । २ . वही, १।२१ वृत्ति ।
३. वही, १२० वत्ति । ४. वही, ११३७ वृत्ति ।
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