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शाम्ब-हेमचन्द्र इनके मत का उल्लेख करते हैं, पर इनके द्वारा रचित कोई
देशीकोश था, यह स्पष्ट नहीं है । शीलांक-हेमचन्द्र ने इनके मत का उल्लेख तीन स्थानों पर किया है । संभवतः
इन्होंने देशीकोश की रचना की थी।
इन सभी देशी कोशकारों का इतिवृत्त और काल ज्ञात नहीं है। संभवत: इन सभी कोशकारों के देशीकोश हेमचन्द्र को प्राप्त थे और उन्होंने इन सभी कोशों में रही अपर्याप्तताओं को निकालकर देशीनाममाला को समृद्ध बनाने का प्रयत्न किया है । यह तो सुनिश्चित है कि हेमचन्द्र से पूर्व प्रणीत देशी कोशों से हेमचन्द्र का प्रस्तुत देशीकोश विशिष्ट, व्यवस्थित और शब्द के सही अर्थ को प्रकट करने में सक्षम है। देशीनाममाला : एक परिचय
देशीनाममाला देशी शब्दों का विशिष्ट कोश है। आचार्य हेमचन्द्र ने इसके प्रारम्भ में लिखा है
देशी दुःसन्दर्भा प्रायः संदर्भिताऽपि दुर्बोधा ।
आचार्यहेमचन्द्रस्तत् तां संदभति विभजति च ॥
देशी शब्दों का चयन करना, उनके सन्दर्भो की समीचीनता को ढूंढना तथा उनके अर्थों के अवबोध को निश्चित करना दुरूह कार्य है।
इसकी रचना आचार्य हेमचन्द्र ने अपने व्याकरण ग्रंथ सिद्धहेमशब्दानुशासन के अष्टम अध्याय की पूर्ति के लिए की। आचार्य हेमचन्द्र ने इस कोश के दो नामों का उल्लेख किया है—देसीसहसंगहो, रयणावली।
किन्तु इन दोनों नामों के अतिरिक्त प्रत्येक अध्याय के बाद पुष्पिका में 'देशीनाममाला' नाम भी मिलता है।
इसके रचनाकाल के बारे में भी भिन्न-भिन्न मान्यताएं हैं। यह तो स्पष्ट है कि इसकी रचना आचार्य हेमचन्द्र ने सिद्ध हेमशब्दानुशासन तथा संस्कृत के कोशों-अभिधान चिंतामणि, अनेकार्थ संग्रह आदि के पश्चात् की। डा० बूलर के अनुसार देशीनाममाला की रचना वि० सं० १२१४-१५ में होनी चाहिए । यह मत विद्वानों में मान्य भी है।
__ डॉ. भयाणी ने अपने लेख में देशीनाममाला के अनेक शब्दों की संस्कृत छाया करके उनको तद्भव या तत्सम माना है। १. देशीनाममाला, ८७७ :
इय रयणावलीणामो, देसीसहाण संगहो एसो ।
वायरणसेसलेसो, रइओ सिरिहेमचन्दमुणिवइणा ॥ २. कालूगणि स्मृति ग्रंथ, संस्कृत प्राकृत जैन व्याकरण कोश की परम्परा, पृ८३-१०७॥
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