Book Title: Chhahadhala
Author(s): Daulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
Publisher: B D Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ प्रथम दाल तास भ्रमणकी है बहु कथा, पै कछु कहूं कही मुनि यथा । काल अनन्त निगोद मझार, बीत्यौ एकेन्द्री तन धार* ||४|| अर्थ - इस जीवके संसारमें परिभ्रमण करनेकी बहुत बड़ी कड़ानी है, परन्तु मैं ( ग्रन्थकार - दौलतराम ) उसे संक्षेपमें कुछ कहता हूं जैसे कि हमारे श्री परम गुरु मुनिराजोंने कही है। इस जीवने अनन्त काल तो निगोदके भीतर एकेन्द्रिय : शरीरको धारण कर बिताया है । विशेषार्थ - ग्रन्थकार प्रारंभ करते हुए कहते हैं निगोदके भीतर रहा । जीवके संसार - परिभ्रमणकी कहानी कि सबसे अधिक काल तो यह जीव शंका- निगोद किसे कहते हैं ? समाधान - तिर्यंच गतिमें पांच प्रकारके जीव होते हैंएकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय । इनमें | एकेन्द्रिय जीव भी पांच प्रकारके होते हैं । पृथ्वी - कायिक, जल-. कायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक | वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकारके होते हैं— प्रत्येक शरीर वनस्पति० और साधारण शरीर वनस्पति । इनमें साधारण शरीर वनस्पतिकायिक जीवोंको निगोद कहते हैं । I शंका – साधारण शरीर वनस्पतिकायिक किसे कहते हैं ? - ★ जीव ांतकालं बसइ णिगोरसु श्राइं |रिहीणो ||२८४ स्वामिका० ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 206