Book Title: Arhat Vachan 2001 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ अर्हत्व कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर इस युग के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव की तीर्थंकर परम्परा में अन्तिम चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर के 2600 वें जन्मजयंती महोत्सव के सन्दर्भ में प्राचीन जैन सिद्धान्त एवं पुराण ग्रन्थों के अनुसार महावीर स्वामी का शोधपूर्ण वास्तविक परिचय यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है - लगभग दो हजार वर्ष पूर्व श्री यतिवृषभाचार्य द्वारा रचित 'तिलोयपण्णत्ति' ग्रन्थ में वर्णन आया है कि - वर्ष - 13, अंक 2, अप्रैल 2001, 9-16 भगवान महावीर की जन्मभूमि कुण्डलपुर ■ आर्यिका चन्दनामती* अर्थात् भगवान महावीर कुण्डलपुर जिला नालन्दा (बिहार प्रदेश) में पिता सिद्धार्थ और माता प्रियकारिणी से चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में उत्पन्न हुए । सिद्धत्थराय पियकारिणीहिं, णयरम्मि कुंडले वीरो । उत्तरफग्गुणिरिक्खे, चित्तसियातेरसीए उप्पण्णो ॥ 549 || षट्खण्डागम के चतुर्थ खण्ड एवं नवमी पुस्तक की टीका में श्री वीरसेनाचार्य ने भी कहा है कि - 'आषाढ़ जोण पक्ख छट्ठीए कुण्डलपुर णगराहिव णाहवंश सिद्धत्थ णरिन्दस्स तिसिला देवीए गब्भमागंतणेसु तत्थ अट्ठादिवसाहिय णवमासे अच्छिम चइत्त सुक्ख पक्ख तेरसीए उत्तराफग्गुणी गब्भादो णिक्खंतो।' 2 वर्तमान समय से 2600 वर्ष पूर्व बिहार प्रान्त के नालन्दा जिले में स्थित 'कुण्डलपुर' नगर में जब भगवान महावीर ने जन्म लिया तो जन्म से 15 महीने पूर्व से ही माता त्रिशला के आँगन में रत्नवृष्टि हुई थी। इस रत्नवृष्टि के विषय में 'उत्तरपुराण' नामक ग्रन्थ में श्रीगुणभद्रसूरि कहते हैं Jain Education International - - तस्मिन् षण्मासशेषायुष्यानाकादागमिष्यति । भरतेस्मिन् विदेहाख्ये, विषये भवनांगणे ॥ 251 ॥ राज्ञः कुंडपुरेशस्य, वसुधाराप तत्पृथु । सप्तकोटीमणीः सार्द्धाः, सिद्धार्थस्य दिनं प्रति ॥ 252 || आषाढे सिते पक्षे -11 3 अर्थात् जब अच्युत स्वर्ग में उसकी आयु छह महीने की रह गई और वह स्वर्ग से अवतार लेने के सम्मुख हुआ, उस समय इस भरतक्षेत्र के विदेह नामक देश में 'कुण्डलपुर' नगर के राजा सिद्धार्थ के घर प्रतिदिन साढ़े तीन करोड़ मणियों की भारी वर्षा होने लगी। हरिवंशपुराण में भी श्री जिनसेनाचार्य ने द्वितीय सर्ग के अन्दर श्लोक नं. 5 से 24 तक महावीर स्वामी के गर्भकल्याणक का प्रकरण लिखते हुए कुण्डलपुर नगरी का विस्तृत वर्णन किया है तथा उस नगरी की महिमा महावीर के जन्म से ही सार्थक बताते हुए कहा है कि . एतावतैव पर्याप्तं, पुरस्य गुणवर्णनम् । स्वर्गावतरणे तद्यद्वीरस्याधारतां गतम् ॥ 12 ॥ 4 * संघस्थ गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी, C/o. दि. जैन त्रिलोक शोध संस्थान, हस्तिनापुर - 250404 (मेरठ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 120