Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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२. अपभ्रंश भाषा
अपभ्रंश के स्वरूप विषयक प्राचीन उल्लेख
( अलंकार, व्याकरण आदि के प्राचीन ग्रन्थों में प्राप्त अपभ्रंश विषय उल्लेख का भाषांतर यहाँ दिया गया है । मूल उल्लेख इस विभाग के परिशिष्ट में हैं ।)
'अपभ्रंश' संज्ञा के अर्थ :
1. इष्ट या मान्य स्थान से, स्तर से च्युत होना, नीचे गिरना यह । 1 यह पतन अर्थात् लाक्षणिक अर्थ में 'स्खलन', 'भ्रष्टता', या 'विकृति' ( आचार-विचार के प्रदेश में) :
(1) 'बड़ों के लिये भी बहुत चढ़ने का परिणाम अपभ्रंश में आता है ।' (कालिदास).
'अशिष्ट' रूप वा 2. भाषा की 'भ्रष्टता' या 'विकृति' । 'भ्रष्ट', 'विकृत', शब्द - प्रयोग | (तुलनीय 'अपभाषा', 'अपशब्द', 'अपप्रयोग' आदि) :
1
( 3 ) ' ( प्रत्येक ) अपभ्रंश की प्रकृति साधु ( = व्याकरणशुद्ध) शब्द होते हैं' (व्याडि) (4) 'अपभ्रंश ( ही ) ज्यादा होते हैं, ( जबकि ) शब्द (तो) कम होते है । जैसे कि एक एक शब्द के अनेक अपभ्रंश होते हैं । जैसे 'गौ' शब्द के 'गाव', 'गो' श्रोता', 'गोपोतलिका' आदि अनेक अपभ्रंश हैं ।' (पंतजलि) :
1. आचार्य भरत 'समान शब्द, 'विभ्रष्ट' और 'देशीगत' ऐसे त्रिविध प्राकृत का उल्लेख करते हैं और परिभाषा देते हुए कहते हैं कि 'जो अनाथ वर्ण, संयोग, स्वर या वर्ण का परिवर्तन या लोप प्राप्त करते हैं उन्हें विभ्रष्ट कहते हैं । ( नाट्यशास्त्र, 17–3, 5, 6).
2. 'अपशब्द' के लिये भी यही कहा गया है : 'त एव शक्तिवैकल्य प्रमादालसतादिभिरन्यथेोच्चारिताः शब्दा अपशब्दा इतीरिताः ॥ ' ( भर्तृहरि) 'अशक्ति, प्रमाद, आलस्य के कारण भिन्न रीति से उच्चरित शब्द ही अपशब्द कहे. जाते हैं ।'
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