Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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'शस ' ( = द्वितीया बहुवचन का प्रत्यय) लगने पर 'एइ' ऐसा आदेशः
होता है । उदा० (१) एइ ति घोडा, एह थलि ।। (देखिये 330/4)
(२) एइ पेच्छ ॥ छाया एतान् पश्य । अनुवाद इन (सब) को देख ।
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उदा०
शब्दार्थ
अदस ओइ ॥ 'अदस' का 'ओई' । अपभ्रंशे 'अदस:' स्थाने जस-शसोः परयोः 'ओई' इत्यादेशो भवति । अपभ्रंश में 'अदस' के स्थान पर, जस्' (प्रथमा बहुवचन का प्रत्यय) और 'शस ' ( = द्वितीया बहुवचन का प्रत्यय) लगने पर, 'ओई' ऐसा आदेश होता है। जइ पुच्छह घर बड्डा तो वड्डा घर ओइ । विहलिअ-जण-अन्भुद्धरणु कंतु कुडोरइ जोइ ॥ जह-यदि । पुन्छह-पृच्छथ । घर-गृहाणि । वड्डाइँ (दे.)-महन्ति । तोततः । वडा-महन्ति । घर-गृहाणि । ओइ-अमूनि । विहलिअ-जण
अब्भुद्धरण-विफलित-जनाभ्युद्धरणम् । कंतु-कान्तम् । कुडीरइ-कुटीरके। जोइ-पश्य ।। यदि महन्ति गृहाणि पृच्छथ, ततः महन्ति गृहाणि अमूनि । विफलितजनाभ्युद्धरणम् कान्तम कुटीरके पश्य । यदि बड़े घर को पूछते हो, तो वे (रहे) बड़े घर । निराश जनों के उद्धारक (मेरे) पति को (वहाँ) झोपड़ी में देख । अमूनि वर्तन्ते पृच्छ वा ।। (उदाहरण में 'ओई' को प्रथमा बहुवचन के रूप में लेने पर) “वे रहें। (और द्वितीया बहुवचन के रूप में लेने पर) 'उनको पूछ' (ऐसा अर्थ लिया जा सकता।
छाया
अनुवाद
वृत्ति अनुवाद
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