Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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396/1. के उत्तरार्ध के साथ तुलनीय : रे रे विडप्प मा मुयसु दुज्जणं गिलसु पुणिमायंदै ।
('वज्जालग्ग', 483 (2)) "रे रे राहु, दुष्ट पूर्णिमाचन्द्र को मत छोड, निगल जा ।' 396/4 की प्रतिध्वनि' दोहापाहुड 177 में भ्रष्ट रूप में है । और तुलनीय :
सज्जन विछ्रे जो मिले, पलक न मेलू पास ।
रोम रोम में मिलि रहू, ज्यौ फूलन में बास ॥ .401/4 के साथ तुलतीय :
___ नीचैः शंस हृदि स्थितो हि ननु मे प्राणेश्वरो श्रोष्यति । ('अमरुशतक', 6) और :
हरुए कहु मो हिय बसत सदा बिहारीलाल । ('बिहारी-सतसई') 406/1. के साथ : तुलनीय :
ताव-च्चिय गलगज्जि कुणंति पर-वाइ-मत्त-मायंगा । चरण-चवेड-चडक्क न देह जाव देव-सूरि-दरी ॥
('पुरातन-प्रबंध-संग्रह', पृ. 26, पद्य 71) चडक्क शब्द का अन्य एक प्रयोग : पडिया जेणायंडे दुक्ख-चडक्का मह सिरम्मि ॥
(जिनदत्त-कथानक', पृ. 91, पद्य 410). 406/2. के साथ तुलनीय :
ताव चिय दलहलया जाव च्चिय नेह-पूरिय-सरीरा । सिद्धत्था उण छेया नेह-विहूणा खलोहुति ||
('वज्जालग्ग', 559) 'तब तक ही कोमल होते हैं जब तक उनका शरीर स्नेहपूर्ण होता है : सरसों ... तथा विदग्धजन स्नेह विहीन होने पर खल (1. दुष्ट, 2. खली) बन जाते हैं।'
414/2 की 'दोहापाहुड' 169 में प्रतिध्वनि है । अर्ध उलट-पुलट हैं । 414/4. के साथ तुलनीय :
एहइ सो वि पउत्थो अहं अ कुप्पेज्ज सों वि अणुणेज्ज । इअ कस्स वि फलइ मणोरहाण माला गिअअंमम्मि ।।
(सप्तशतक', 1/17)
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