Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 231
________________ १६६ जत्तो पेसेइ दिहि सरस-कुवलआपीडरूअं सरूआ मुद्धा इद्धं सलीलं सवणविलसिरं दंतकंतीसणाहं । तत्तो को अंड-मुट्ठि णिहिअ-सरवरो गाढमाबद्धलक्खो । दूरं आणाविहेओ पसरइ मअणो पुश्वमारूढवक्खो ।। ('स्वयंभूछन्द', 1/119) 423/2. : के साथ तुलनीय : खज्जति टसत्ति न भंजिऊण पिजति नेव धुंटेहिं । तह-वि कुणंति तित्ति आलावा सज्जण-जणस्स ।। ('गाहारयण-कोस', पद्य 84) 426/1. के साथ तुलनीय : सो णाम संभरिज्जइ पन्भसिओ जो खणं पि हिअआहि । संभरिअव्वं च कथं गरं च पेम्मं णिगलंब ॥ ('सप्तशतक,' 1/95) 'याद तो उसे करना होता है, जो हृदय में से (एक) क्षण के लिये भी हटे । जो प्रेम याद करने जैसा किया उसे निराधार बना (ही जानिये) । यही गाथा कुछ पाठान्तर के साथ 'जुगाइजिणिद-चरिय' (पृ. 53) में मिलती है। 427/1 = 'परमात्माप्रकाश', 271. (पाठान्तर : पँचहुँ नायकु, जेण होति वसि अण्ण, तरुवरहँ अवसइँ सुक्कहि पण्ण) । 434/1 के साथ तुलनीय : अविअण्ह-पेक्खणिज्जेण तक्खणं मामि तेण दिळेण । सिविणअ-पीएण व पाणिएण तण्ह चिअ ण फिट्टा ।। ('सप्तशतक,' 1/93) 'हे सखी, उस क्षण, देखने पर भी तृषा बुझे ही नहीं ऐसे दर्शनीय उसे देखकर (मानों कि) स्वप्न में पानी पीने से तृषा बुझी ही नहीं ।' 438/2. के साथ तुलनीय : पक्खुक्खेवं नह-सूइ-खंडणं भमर-भरसमुम्वहणं । उय सहइ थरहरंती वि दुबला भालइ च्चेव ।। ('वज्जालग्ग', 235) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262