Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 237
________________ 4. दोहाबन्ध : ( 1 ) 'ढोला-मारू' प्रकार के दोहे (330.1, 2; 425.1). (2) अन्य प्रेमकथाओं के दोहे (मुंजकृत : 350.2, 395.2, 414.3, 431.1; मुंज के बारे में : 439.3, 4) (3) वीररस के दोहे | (४) जैन अगमनिगम परंपरा के दोहे (427.1) 5. गीत १७२ (5) आणंद -करमानंद के दोहे जैसे लौकिक दोहे (401.3). ( 6 ) सुभाषित : शृंगारिक, वीररस के, औपदेशिक, अन्योक्ति (360, 387.2). : घवलगीत ( 340.2, 421.1 ). 5. पुरोगामी के व्याकरण- सूत्र नमिसाधुने रुद्रट के 'काव्यालंकार' पर अपनी वृत्ति (इ. सन् 1068) में अपभ्रंश के दो-चार लक्षणों का संभवतः किसी पुरोगामी अपभ्रंश व्याकरण के आधार पर ( संभव है जिसका उपयोग हेमचन्द्रने भी किया हो : शब्दानुशासन का समय 1094-95 ) उल्लेख किया है : 1. न लोपोsपभ्रंशेऽ घोरेफस्य । उदाहरण : भ्रमरु | (तुलनीय | हे. 198 : वाऽधो रोलुक् ) 2. अभूतोऽपि क्वाप्यधोरेफः क्रियते । उदाहरण : वाचालउ । (तुलनीय है. 399 अभूतोऽपि क्वचित् ) 3. तथोदन्तस्य ( ? ) दकारो भवति । उदाहरण : गोत्रु गंजिदु (? दु) मलिदु चारितु ( १) इत्यादि । (तुलनीय है. 396 और तीसरे उदाहरण में 'कधिदु') 4. ऋतः स्थाने ऋकारो वा भवति । उदाहरण : तृण-सम गणिन ( ?ज्ज ) इ । (तुलनीय है. 358 ( 2 ) : तिणसम गणइ विसिद्ध; तथा व्याकरण की रूपरेखा 1. 32 पर सूचित उदाहरण | पिशेल के व्याकरण में हेमचन्द्र के तथा अन्य उदारणों के उल्लेख मिलते हैं (परिच्छेद 268 ). Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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