Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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382/1. के साथ तुलनीय :
धणसारतार-णअणाएँ गूढ-कुसुमुच्चयो चिहुर-भारो । ससि-राहु-मल्ल-जुज्झ व दंसिदमेण-णअणाएँ ।।
('कर्पूरमंजरी', 2, 21) 'कपूर की भाँति चमकते नयनोंवाली (उस सुन्दरी के) केशकलाप में गूढ पुष्पपुंज है । (इससे उस) हरिणाक्षीने मानों चन्द्र और राहु का मल्लयुद्ध दर्शाया ।' 383/1. के साथ तुलनीय :
मा सुमरसु चंदण-पल्लवाण करि-णाह गेण्ह तिण-कवलं । जं जह परिणमइ दसा तं तह धीरा पडिच्छति ॥
('वज्जालग्ग', 192) 'हे गुजपति, चन्दनपल्लवों को (अब) मत याद कर । घास का कौर ले । जो (भाग्य)दशा जिस ढंग से आती है, उसे धीर पुरुष उस ढंग से अपना लेते हैं।' 387/2. के साथ तुलनीय :
छप्पय गमेसु कालं वासव-कुसुभाई ताव मा मुयसु । मन्ने नियंतो पेच्छसि पउरा रिद्धी वसंतस्स ॥
. ('वज्जालग', 244) 'भ्रमर, (जैसे-तैसे) समय बीता दे । बहेड़े के फूल को तो छोड़ ही मत । यही मानना कि जिन्दा रहेगा तो वसंत की प्रचुर रिद्धि तू देखेगा।'
389/1 = 'परमात्मा प्रकाश' 270 ।
(पाठांतर : विसय जु. बलि किज्जउं हउँ तासु, सो दइवेण जि, सीसु खडिल्लउ जासु.) संत-च्चाई चाई खल्लाडो मुंडिओ चेव ।
('पुहइचंद-चरिय', पृ. 217, पं. 28, गाथा 193) 390. के साथ तुलनीय :
कह-कह-वि तुडि-वसेण ।
('जुगाइजिणिंद-चरिय', गा. 394, पृ. 30) 391/2. 'वृत्तजाति-समुच्चय' (4136) में ब्रोदि = ब्रूते का प्रयोग हुआ है। कुछ अशुद्धियों की शुद्धि के बाद पाठ इस प्रकार है
___ एयहु मत्तहुँ अंतिमउ, जावहि दुवह भोदि ।
तो तहु णामें रड्ड फुड्डु, छंदउ कइ-जणु ब्रोदि ॥
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