Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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(2) सिक्खेइ, तिक्खेइ के ए के लिये देखिये सूत्र 334 विषयक टिप्पणी। वम्मह-(सं. मन्मथ-) और वम्म (सं. मर्म) इन रूपों में आद्य म् > व ऐसा यह परिवर्तन वैरूप्य का (dissimilation) उदाहरण है। संपर्क में रहे हुए दो मकारों में से पहले का वकार हुआ है ।
सरु का उकार हेमचन्द्र के मतानुसार प्रत्यय नहीं हैं परंतु स्वरविकार है । देखिये सूत्र 332.
345. अप्रत्यय षष्ठी के लिये देखिये भूमिका में 'वाकरण की रूपरेखा' । गय-कुंभई इस प्रकार गय- को सामासिक भी माना जा मकता है। ऐसा करने पर यह समझा जाये कि अइमत्तहँ चत्तंकुसहँ इन विशेषणों का विशेष्य अलग रहने के बदले में समास का अंग बन गया है । हालाँकि ऐसे प्रयोग विशेष स्तर पर शिथिल माने जायेंगे फिर भी प्रशिष्ट संस्कृत और प्राकृत अपभ्रंश में प्रचलित थे । टीकाकार सापेक्षत्वेऽपि गमकत्वात् साधुः 'समस्त शब्द सम्बन्ध की अपेक्षा जगाता है फिर भी समझ में आये ऐसा होने के कारण सही प्रयोग' कहकर उसका स्वीकार करते थे । परंतु प्रत्ययरहित षष्ठी के उदाहरण के रूप में लेने के लिये गय को मुक्त पद के रूप में लेना जरुरी है । इसके अलावा देखिये 332 (2), 383 (3) ।
यहाँ अम्हारा में म्ह संयुक्त व्यंजन नहीं है बल्कि उसे हिन्दी म्ह की भाँति सादा व्यंजन मानना है । इसलिये अ की एक ही मात्रा है। इस से विपरीत 357 (2) में गिम्ह में म्ह को संयुक्त व्यंजन मानना है । रकार युक्त व्यजनों के ऐसे ही शिथिल उच्चारण के लिये देखिये 360 (1)।
347 (2). तीन मार्ग अर्थात् संस्कृत काव्यशास्त्र में प्रसिद्ध तीन रीतियाँ : वैदर्भी, गौडी और पांचाली । पहिली सुकुमार, दूसरी विचित्र, तीसरी मध्यम । छन्द वस्तुवदनक (अपर नाम वस्तुक या काव्य) है, जो आगे चलकर और 14 मात्रा पर यति के साथ रोला नाम से ख्यात है । नार : 6+4+4+4+6 = 24 मात्राएं ।
348 से 352 ये सूत्र स्त्रीलिंग अंगों के रूपाख्यान विषयक हैं ।
348 (2). स्कंधक छन्द लगता है । स्कंधक में 4+4+4 - 12 हैं और 4+4+~ ~ ~ +5 + 4 = 20 कुल मिलाकर 32 मात्राएं होती हैं । यहाँ पहली छ मात्राओं का भंग होता है। बाकी 26 मात्रा का टुकड़ा है । भाषा प्राकृत है । 365 (2), 370 (1), 422 (10) वे भी अपभ्रंश के स्थान पर शुद्ध प्राकृत के उदाहरण हैं । ।
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