Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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(4). खडक- और घडक- में धातु के सादे रूप *खुड- और # घुड- हैं । *खुड- पर से हिन्दी खड़खड़ना, गुज. खडखडवू का खड़- अंश आया है ।। अर्थछावा बदल गयी है । घुड- का घड- हिं. गुज. घडघड में है ।
वासारत्त-का मूल सं. वर्षारात्र- है । वर्षारात्र = वर्षाऋतु । वर्षा- का प्राकृतअपभ्रंश में वासा- होता है । विश्लेष से वरिसा- भी होता है । उसी प्रकार वर्षारात्रका वारेसारत्त ऐसा रूप होता है और उस पर से वरसारत और हिं. गुज. बरसात, वरसात, वरसाद. पवासुअ : प्र+वस- और -उक-ये कर्तृवाचक प्रत्यय लगकर *प्रवासुक- होगा उस पर से पवासुअ । अथे 'प्रवासी' ही है । विसमा मय्यदेशीय रूप है । देखिये 330 विषयक टिप्पणो |
(5). अम्मि माता का तथा सखी का भी संघोधन है । यहाँ पहला संबोधन लेने में अनौचित्य है । हिन्दी में हाँ माँई, हाँ बाबा, गुज. में हा माडी, हा, बापु ऐसा समवयस्क को भी बतियाते हुए कहा जाता है ।
संमुह- पर से सामुह- और फिर गुज. सामुं, सामे (हिं. सामने)। भज्जिउ हेमचन्द्र (439, 2), ढुंढिकाकार, पीशेल और वैद्य मानते हैं वैसा सम्बन्धक भूतकृदंत नहीं है, परंतु भग्जिअ का संक्षिप्त किया हुआ स्त्रीलिंग प्रथमा बहुबचन है । कंतह यह षष्ठी यहाँ तृतोया के अर्थ में है । तुलनीय गुजराती प्रयोग घरनो बल्यो, गाम बाळे ('घर का जला पूरा गांव जलाता है'), कोईनो लीधो जाय तेवो नथी (कोई खरीद सके ऐसा नहीं है'), 'दूध ना दाझ्यो, छाश कीने पीवे ('दूध का जला छाछ भी फूककर पीता है'), हाथनां कयाँ हैये वागे ('अपने ही हाथों किये कर्म का फल खूद भोगना है') आदि. हिंदी में भी ऐसे प्रयोग मिलते हैं । भग्न = ('टूटी हुई', 'भगाई हुई') । थंति और जाति का विरोध इस प्रकार देखा जा सकता है : पति के सामने नहीं टिक पाती गजघटाओं से भी बढ़कर है इन नित्य सम्मुख रहते पयोधर की कठोरता ।
(6). जा<जाव < यावत् । दूसरे जा = या एसा अर्थ करते है । पुत्ते जाएं : जिनीया सप्तमी के अर्थ में) सति सप्तमी का प्रयोग स्वीकार करके भी अर्थ बिठाया जा सकता है। बप्पीकी ये बाप- को मत्वर्थीय-इक्क-प्रत्यय लगाकर सिद्ध बप्पिक्कका स्त्रीलिंग वप्पिकी पर से, क इकहरा हो कर पूर्व स्वर दीर्घ हो कर सिद्ध हुआ है । यह संयोगलोप और पूर्वस्वर-दीर्घभाव की प्रक्रिया आधुनिक भारतीय-आर्य भमिका का लक्षण है । अपभ्रंश भूमिका तक विशिष्ट अपवादों में संयुक्त व्यंजन
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