Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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442. ब्राह्मणीय परंपरा के साहित्य में से उदाहरण लिये हैं । कीलदि, तिदसावास प्राचीन रूप हैं ।
443. गुजराती में °णो (°णउ) के बदले कणो प्रत्यय है। मारकणो 'मारनेवाला', बोलकणो 'वाचाल' आदि । इसमें मार आदि का क प्रत्यय से विस्तार हुआ है ।
444. (2). मूल प्राकृत तथा उसी भाव के संस्कृत पद्य के लिये देखिये 'परिशिष्ट' ।
(3). उद्धभुअ के स्थान पर छन्द की खातिर उद्धब्भुअ | गुजराती ताग अर्धतत्सम लगता है । वह थाह में से विकसित हुआ नहीं है ।
(4). नजर उतारने के लिये--अनिष्ट को दूर रखने के लिये लोन उतारने कीनमक ऊतार कर आग में डालने की रीति प्रसिद्ध है । जिन देव पर से ऊतारकर आग में डाला हुआ नमक, 'सलोने मुख से हुई ईर्ष्या से प्रेरित होकर अग्नि-प्रवेश करता है-ऐसा अर्थ उत्प्रेक्षित है ।
(5). तुलना के पद्य के लिये देखिये 'परिशिष्ट'। छन्द : 11+ 10 नाप का लगता है । तीसरा चरण अधूरा है । सोहेइ ऐसे पाठ की कल्पना करें तो छन्दभंग नहीं होगा ।
445. लिंग में हुए परिवर्तनों के मूल में प्रायः या तो अंत्य स्वर का या अर्थ का सादृश्य होता है । आगे चलकर स्त्रीलिंग का इकार लघुता का और नपुंसकलिंग सामान्य स्वरूप का वाचक बनने पर सुबिधा के अनुसार किसी भी पुल्लिंग अंग को ये प्रत्यय लगने लगे । और नपुंसकलिंग और पुल्लिंग के भेदक एक-दो प्रत्यय थे, वे भी लुप्त होने पर उनके बीच कईबार वाकई भ्रम भी होता हो । अंबडी (गुज. आंतरडी, हिं. अंतडियाँ) यह 'छोटी आंत' के अर्थ में है।
446. यह सूत्र यह सुचित करता है कि हेमचन्द्रने शौरसेनी प्रभाववाले अपभ्रंश साहित्य को भी उपयोग में लिया है । त् >दु यह प्रक्रियावाले चार और दू सुरक्षित रखता एक रूप 'शौरसेनी'पन दिखाता है ।।
छन्द ‘मात्रा' । देखिये 450 (1) विषयक टिप्पणी ।
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