Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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(3). गुजराती लोकसाहित्य में आणंद-करमाणंद के दोहे प्रसिद्ध हैं । प्रस्तुत दोही यह सूचित करता है कि उसकी परंपरा हेमचन्द्र तक जाती है । दोहा प्रश्नोत्तर के रूप में है । जणु के लिये देखिये सूत्र 444 ।
402-403. हेमचन्द्र ने यादृश - और यादृश- के आदेशों के भेद किये हैं जो उचित नहीं है । यादृश- आदि में प्राकृत में ज-आदि सार्वनामिक अंगों के प्रभाव से जइस-, स->ह.- इस प्रक्रिया से *जइह-, फिर जेह- और स्वार्थिक -अ- प्रत्यय जुड़कर जेहय- ऐसा विकासक्रम है ।
402. मइँ भणिअउ के साथ तुलनीय मैंने कहा, कहती हूँ कि आदि चालु लहजे । वढ के लिये सूत्र 422 (14, 16). उदाहरण हिन्दु परंपरा के साहित्य से लिया है ।
403. कामचलाऊ उदाहरण ।
404. वैदिक इत्था पर से इत्थ, फिर प्रा. कत्थ, तत्थ तथा एत्थु, जेत्थु, और तेत्थु । घडदि और प्रयावदी की त् >द् और प्र.>प्र ये प्रक्रियाये प्राचीनता की सूचक है ।
406. तावत् का व, किसी कारण से अनुनासिक बनने पर ताव, ताम *तामु फिर ताउँ । सप्तमी का हि लगकर तामहि आदि ।
(1). मदगल- 'मदझरते' पर से मयगल राजस्थानी-गुजराती मेगळ. कदम-कदम पर ढोल बजते हैं = बल के गर्व में धमघम करते चलते हैं ।
407. तेवड- का मूल तेवढ- है । इस तरह यह संयोगलोप का उदाहरण (और आधुनिकता का लक्षण) है । देखिये भूमिका में 'व्याकरण की रूपरेखा' ।
तेवड- = ते+बड्ड-: बड्ड-(देशज) - हिं. वडा, गुज. वडं. तेवड्ड = वैसा बड़ा ।
1) छन्द सोलह मात्रा का (4+4+4+--..) वदनक है। आगे चलकर 'चौपाई' के नाम से प्रसिद्ध हुआ है ।
तेत्तुल- भी मूल में तेत्तुल्ल- है । तेत्तुल्ल- = ते + तुल्ल- | तुल्ल-< सं. तुल्य- । तेत्तुल्ल- 'उसके जैसा' 'उसके जैसे नापका'. गुज. तेटलुं 'उतना'- इस प्रकार अर्थविकास हुआ है।
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