Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अपभ्रंश में भी दिवे दिवे है । आधुनिक गुज. दिए दिए ('दिनों दिन') । नाहि पर से गुजराती ना, प्रा. हिन्दी नाहीं ।
(7) ओहट्ट- का मूल अप + घट्ट- है। तुलनीय हिन्दी घटना, गुज. घटवू क्रियाए और घाटा, घाटो ये संज्ञाये । ओहट्ट- पर से गुज. ओट 'भाटा' (संज्ञा) । छन्द : 13+16 मात्राओं का है । पमन-तृतीय चरण दोहे के समान हैं । द्वितीय-चतुर्थ चरण वदनक के समान हैं।
___420. पश्च- का पच्छ-, स्वार्थिक प्रत्यय से पच्छअ- और सप्तमी का रूप पच्छइ । एम्वइ का मूल एम-वि<एवम् + अपि है। च+ एव-चैव, प्राकृत चेव, च्चेव > ज्जेअ, ज्जे फिर जे, जे और ज्जि, जि, आधुनिक गुज. ज 'ही'। पच्चलिउ का मूल *प्रत्यलीक है । अनीक- अर्थात् 'मोरचा', 'अगला भाग' । अलीक अर्थात् 'भाल' । इस पर से प्रत्यलीक अर्थात् 'विपरीत' 'उल्टा' । तुलनीय प्राकृत पडिणीय- ( = प्रत्यनीक-) 'विपरीत' ।
(5) गुजराती में मीठु (नमक) का प्रयोग लाक्षणिक अर्थ में 'अकल' के लिये होता है जवकि पहले लवण का लाक्षणिक अर्थ 'सुन्दरता' होता था। सलवण 'सुन्दर' और उस पर से अअ. सलोण, सलोणय, स्त्रीलिंग, सलोणी गुज. सलोणा सलोणी, हिं. सलोना, सलोनी । पीशेल मानता है कि नब- को स्वार्थिक °ख-प्रत्यय लगा और नवख- सिद्ध हुआ। परंतु नवख- का प्राचीन रूप नबक्ख- और हिंदी अनोखा, गुज. नोखु, अनोखु पीशेल के ध्यान में नहीं होगा। नवक्ख- या तो *नवपक्ष, नवबक्ख पर से समान-धनिलोप से सिद्ध हुआ हो और तो गुज. अनोखु में लोप, अलोप, हिंदो की बोली में अचपल (चपल) आदि की भौति अ का प्रक्षेप हुआ हो। अपवा अन्यपक्ष- पर से अन्नवक्ख- और फिर आद्य स्वर के लोप से नवक्ख-। इस दूसरे विकल्प में एक तकलीफ यह है कि अन्नवक्ख- में -न्न- पूर्व के अकार का लोप मानना पड़ता है।
___421. सं. उक्त-, ऊढ- जैसों का प्राकृत-अपभ्रंश में उत्त-, ऊढ- होने चाहिये परंतु वच, वह ईन मूल धातुओं के प्रभाव से वुत्त-, चढ-होते हैं ।
विच्च- का ध्वनि की दृष्टि से तो वर्त्मन्- के साथ सम्बन्ध नहीं ही है, परंतु अर्थ की दृष्टि से भी वह 'मार्ग' से ज्यादा 'मध्य' से सम्बद्ध है । हिंदी बोच और गुज, वच्चे इस में से आये हैं। गुज. अघवच, हिंदी अधबीच, गुज. वचाळ
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