Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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386 °हुँ का हकार लुप्त होने पर प्रथम पुरुष बहुवचन में आधुनिक रूप °करूँ 'हम करें' ऐसा होगा । परंतु उसके स्थान पर वियर्थ तृतीय पुरुष एकवचन के इअइ प्रत्यय में से आया हुआ °इए का प्रयोग गुजराती में होता है । गुजराती में वळवु अर्थात् 'बीमारी से दुबले हुए शरीर का मुटाकर अच्छा होना । 'शरीर वळवु ('शरीर का अच्छा होना, मूलरूप प्राप्त करना') यह एक विशिष्ट गुजराती प्रयोग । भोजन न मिलने पर कमजोर बना शरीर भोजन से फिर स्वस्थ होता है वैसे युद्धप्रिय युद्ध के बिना दुबला हो जाता है और युद्ध मिलने पर स्वस्थ होता है।
प्रत्यय
वर्तमानकाल के प्रत्यय और रुपाख्यान :
कर, के रूप एकवचन बहुवचन एकवचन बहुवचन प्रथम पुरुष उ, मि हुँ, मु । करउँ, करमि, करहुँ करमु
करामि, (करामु व०) द्वितीय पुरुष हि, सि हु, ह । करहि, करसि करहु, करह तृतीय पुरुष इ, (अं)ति । करइ करहि, करंति
387, अज्ञार्थ के विशिष्ट प्रत्यय ।
ऍ का रूपांतर इ । प्रा. गुज. में °इ प्रत्यय है । सौराष्ट्र आदि प्रदेश की बोलियों में यश्रुति के रूप में अब भी वह बचा है । ('कर्य', 'बोल्य', प्राचीन करि, बोलि)
(2). पत्तल- में -ल- प्रत्यय मत्वर्थीय है ।
(3). सेल्ल- : ध्वनि की दृष्टि से सं. शल्य- में से सिद्ध हुआ है । तलवार का प्रहार शत्रु की खोपड़ी तोड़ दे। भाला आरपार हो कर मरे हुए शत्रु की खोपड़ी यथावत रखता है । ये शब्द नायक के प्रहार की शक्ति और उसकी पराक्रम-- शीलता के द्योतक हैं ।
अज्ञार्थ द्वितीय पुरुष एकवचन में ए, इ, उ, हि और सु इन प्रत्ययों करे करि, करु, करहि, करसु ऐसे रूप समझे जायें ।
388. भविष्यकाल की विशेषता ।
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