Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
________________
(3). पारकड- और मारिअड- में स्वार्थिक -ड- प्रत्यय है। पारकडा और अम्हहँ तणा इन्हें सुभट समझे । हारजोत का समग्र आधार मात्र प्रिय पर ही है। यदि जीत हुई है तो प्रिय के पराक्रम से और हार हुई है तो प्रिय के रण में मृत्यु को प्राप्त होने से।
380 (1). कामचलाऊ उदाहरण । 381. कामचलाऊ उदाहरण, वह भी प्रकृत । 382 से 389 इन सूत्रों में आख्यातिक रूपाख्यान की विशिष्टताये दी गई हैं । 382 से 386 तक में वर्तमानकाल के प्रत्यय ।
382. हि प्रत्यय में से हकार लुप्त होने पर प्रा. गुज, इं, फिर गुज. हिं. "इ और फलत: (वे) करे जैसे तृतीय पुरुष बहुवचन के रूप । करहि > करइँ > करइ> करे । हि प्रत्यय विकल्प में है। विकल्प (अं)ति प्रत्यय का है । उदाहरण में ही खेल्लंति रूप है।
383 (1). 'चातक' के लिये पप्पीअ, बप्पीह देशज शब्द हैं. हिन्दी में पपीहा, गुजराती में बपैयो ।
383 (2). अन्योक्ति : कृष्ण धनिक के पास बारबार याचना करनेवाले (या उदासीन रूपवती स्त्री के पास बारबार प्रणययाचना करनेयाले) को संबोधन ।
हि प्रत्यय का हकार लुप्त होने पर इ और फिर (तु) करे जैसे रूप । करहि > करइ > करे ।
(3). गय मत्तहँ बों असमस्त मानकर कुछ लोग गज को षष्ठी बहुवचन के रूप में लेते हैं । परंतु मत्तगय ऐसे समास को छन्द की खातिर गयमत्त- यों पलटाना प्राकृत-अपभ्रंश में स्वाभाविक है । इसलिये गज को षष्ठी के रूप में लेने की जरुरत नहीं है। अभिड का मूल आ + स्मिद 'सामने जाना' ('विरोध करना') और गुज. भीडवू, हिं. भिड़ना का मूल स्मिट 'जाना', 'अनादर करना' है ।
384. हु में से °ह लुप्त होने पर करो जैसे रूप । करहु > कर उ >करो। 385. कडूढउपर से हिं., गुज. काढु। (1). अग्घइ 'लायक हो'।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org