Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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375 से ले कर 381 तक सूत्र पहले पुरुष सर्वनाम के विशिष्ट रूप प्रस्तुत करते हैं।
376. अम्हइँ का हकार हिं. हम जैसे रूपों में सुरक्षित है ।
(1). थोवा का मूल सं. स्तोक, प्रा. थोअ है । दो स्वरों के बीच वश्रुति आयी है । -डअ- प्रत्यय लगने पर गुज. थोडु, हिं. थोडा हुआ ।
(2). अंबण, सं. अम्ल, प्रा. अंब-, उस संज्ञा पर से धातु पर अंव- 'खट्टा करना', क्रियावाचक संज्ञा अंबण । अनुमान से 'चटोरा स्वाद' अर्थ लिया है । लाइवि : तुलनीय मराठी लावणे ।
(3). कामचलाऊ उदाहरण ।
377 (1) मइँ जाणिउँ अपभ्रंश का लाक्षणिक मुहावरा है । 'विक्रमोर्वशीय' के चौथे अंक में आते अपभ्रंश पद्यों में भी यह प्रयोग है। यह हेमचंद्र के उदाहरणों में तीन बार आता है (401/6. 423/1) । आधुनिक गुजराती बोलियों में यह जीवंत है-'में जाण्यु जे भूली सुजने मात जो' ('मैं समझी कि माँ मुझे भूल गयी)। 'में घेलीए एम जाण्यु के सोडमां दीवो मेल' ('मैं बौरायी यह समझी कि गोद में दीया रख')।
धरा : सं. ध्रा : 'तृप्त होना' पर से धातुसाधित संज्ञा धरा, धर. खय-गाल-: तुलनीय गुज. खेगाळो ( = क्षयकाल), केरीगाळो ('आम का काल'), 'लगनगाळो' 'विवाह का काल'), 'गाळो' ('काल', 'दौर') । देखिये सू. 396.
379 (1). कामचलाऊ उदाहरण । होतउ के लिये देखिये सू. 355 विषयक टिप्पणी | गदो शौरसेनी रूप । देखिये सू. 3961
(2) देतहों : गुज. देतां ('देते हुए'), जुझंतहों = गुज. झूझतां (हिं. जूझते हुए)। जुज्झ- पर से बाद के व्यंजन के प्रभाव से ज.> झ होने पर गुज. झूझबुं.
व्यानस्तुति का उदाहरण है । निंदा के परदे में स्तुति है । दान की संपूर्णता में इतनी कमी कि पत्नी दे डालना बाकी रहा | पूर्णवीरता में इतनी कमी कि सर्व शत्रुओं का नाश कर डाला परंतु तलवार तो बाकी रही । अन्य शब्दों में अनन्य दानवीर और युद्धवीर ।
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