Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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आधुनिक भाषाओं में केवल गुजराती, मराठी और कोंकणी भाषा में नपुंसकलिंग बचा है । ऐसे कुछ लक्षणों के कारण हिंदी की बनिस्बत गुजराती अपभ्रंश के ज्यादा करीब है । 'आइ वाले रूप पर से गुजराती नपुं. ब. व. का -आं ( सारां पांदडां) आया है । असुलहमेच्छण = असुलह + एच्छण | बीच का मकार संधिमूलक है । प्राकृत में जब कभी समास में बाद का अययव स्वर से शुरू होता हो तब यह मिलता है | एच्छण ( = इच्छण) इच्छ- का हेत्वर्थ कृदंत है । देखिये स्. 441 | ऐसे प्रयोगों में आगे चलकर आधुनिक भाषायें सामान्य कृदंत का प्रयोग करती है (हिं इच्छना, गुज. इच्छवु) । इस प्रकार ऐसे -अण- अन्तवाले रूप हिंदी करना, राजस्थानी करणो, मराठी करणें के पुरोगामी हैं ।
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354. यहाँ जिस रूप का प्रतिपादन किया गया है उस पर से गुजराती नपुंसकलिंग एकवचन का उ - अन्तवाला रूप ( कर्यु, सारु, छोकरु) बना है । हेमचन्द्र के अनुसार संज्ञा के विभक्ति-प्रत्यय और रूपाख्यान इस प्रकार है :
अकारांत पुल्लिंग
नर के रूपाख्यान
एकवचन
प्रथमा द्वितीया
o
तृतीया अनुस्वार, ण पंचमी है, हु षष्ठी सु, सु, हो,
सप्तमीइ, ऍ संबोधन
o
सामान्य विभक्तिरूप |
बहुवचन
प्रथमा
द्वितीया ।
०
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हँ
"che other
एकवचन
नरु, नशे, नर
नरें, नरेण, रहे,
नरस्सु, नरसु, नरहों, नर
नरि, नरे
नर
बहुवचन
अन्य विभक्ति के प्रत्यय अकारांत पुंल्लिंग के अनुसार ।
इसके अतिरिक्त इसमें जहाँ जहाँ अलग या प्रत्यय के पहले नर है वहाँ वहाँ विकल्प में नरा भी हो सकता है ।
बहुवचन
नर
एकवचन
उ
नरहि,
नरहुँ
नाह, नर
अकारांत नपुंसकलिंग
अन्त में क-प्रत्ययवाले कमल के
रूपाख्यान
कमलई, कमलाइ । अन्य
अनुसार ।
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रहि
T
नरे৺हि
रूप
कमल के
रूपाख्यान
कमल उ
नर
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