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________________ १३० आधुनिक भाषाओं में केवल गुजराती, मराठी और कोंकणी भाषा में नपुंसकलिंग बचा है । ऐसे कुछ लक्षणों के कारण हिंदी की बनिस्बत गुजराती अपभ्रंश के ज्यादा करीब है । 'आइ वाले रूप पर से गुजराती नपुं. ब. व. का -आं ( सारां पांदडां) आया है । असुलहमेच्छण = असुलह + एच्छण | बीच का मकार संधिमूलक है । प्राकृत में जब कभी समास में बाद का अययव स्वर से शुरू होता हो तब यह मिलता है | एच्छण ( = इच्छण) इच्छ- का हेत्वर्थ कृदंत है । देखिये स्. 441 | ऐसे प्रयोगों में आगे चलकर आधुनिक भाषायें सामान्य कृदंत का प्रयोग करती है (हिं इच्छना, गुज. इच्छवु) । इस प्रकार ऐसे -अण- अन्तवाले रूप हिंदी करना, राजस्थानी करणो, मराठी करणें के पुरोगामी हैं । 1 354. यहाँ जिस रूप का प्रतिपादन किया गया है उस पर से गुजराती नपुंसकलिंग एकवचन का उ - अन्तवाला रूप ( कर्यु, सारु, छोकरु) बना है । हेमचन्द्र के अनुसार संज्ञा के विभक्ति-प्रत्यय और रूपाख्यान इस प्रकार है : अकारांत पुल्लिंग नर के रूपाख्यान एकवचन प्रथमा द्वितीया o तृतीया अनुस्वार, ण पंचमी है, हु षष्ठी सु, सु, हो, सप्तमीइ, ऍ संबोधन o सामान्य विभक्तिरूप | बहुवचन प्रथमा द्वितीया । ० Jain Education International हँ "che other एकवचन नरु, नशे, नर नरें, नरेण, रहे, नरस्सु, नरसु, नरहों, नर नरि, नरे नर बहुवचन अन्य विभक्ति के प्रत्यय अकारांत पुंल्लिंग के अनुसार । इसके अतिरिक्त इसमें जहाँ जहाँ अलग या प्रत्यय के पहले नर है वहाँ वहाँ विकल्प में नरा भी हो सकता है । बहुवचन नर एकवचन उ नरहि, नरहुँ नाह, नर अकारांत नपुंसकलिंग अन्त में क-प्रत्ययवाले कमल के रूपाख्यान कमलई, कमलाइ । अन्य अनुसार । For Private & Personal Use Only रहि T नरे৺हि रूप कमल के रूपाख्यान कमल उ नर www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
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