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पन्द्रह मात्राओं का गणविभाजन : 3+4+3+5; तीसरा तथा पाँचवा चरण : 3+3 = 4+5; दूसरा तथा चौथा चरण 5+4+3। ज्यादातर पहला चरण मुक्त होता है और तीसरा तथा पाँचवा प्रासबद्ध होता है । हेमचन्द्र के उदाहरणों में 350 (1) रड्डा में और 422 (6) और 446 मात्रा छन्द में हैं ।
350 (2). 'हेमचन्द्र बालहे का सम्बन्ध तीसरे चरण के साथ ले कर उसे पंचमी का रूप मानते है, परंतु उसका स्वाभाविक सम्बन्ध चौथे चरण के साथ ही है 'लोगों खुद को सम्हालो, बाला के स्तन विषम बने हैं ।' देहलीदीपन्याय से बालो को तीसरे और चौथे दोनों चरणों के साथ भी जोड़ा जा सकता है । जे छन्द की दृष्टि से हूस्व पढ़ना है । अप्पणा एकवचन है । तुलनीय हिन्दी अपना, अपने को। छन्द कपूर । नाप : 28 मात्राएँ । पंद्रह मात्राओं के बाद यति । (4+4+4+3 = )15+ (6+4+ = ) 13 = 28 । यह पद्य प्रसिद्ध विद्याविलासी परमारराजा मुंजरचित है | 395 (2), 414 (4) तथा 431 (1) भी मुंजकृत हैं ।
351. उदाहरण में हिन्दी की भाँति प्रथमा एक वचन के कई आकारांत रूप हैं ।
लज्जेज्ज को संस्कृत विध्यर्थ एय-(गच्छेयम् ) प्रत्ययांत प्रथम पुरुष एकवचन पर से आया हुआ और तु को वाक्ययोगी माना है । विध्यर्थ के ऐसे रूप अपभ्रंश के लिये बड़े असामान्य है । तु के स्थान पर °त् होता तो लज्जेज्जत पूग एक शब्द हो जाता । इस प्रकार उसे लज्ज के क्रियातिपत्यर्थ कर्मणि वर्तमान कृदन्त समझा जा सकता है ।
352. झुठे शगुन दे रहा है ऐसा मानकर नायिका ने कौओ को उड़ाया परंतु उसी क्षण उसने यकायक सफर से लौंटते नायक को देखा । सो उसकी आधी चुड़ियाँ विरहजन्य कृशता के कारण हाथ से निकलकर जमीन पर पड़ी और बाकी आधी प्रिबतम के अचानक लौट आने पर हर्षावेश के कारण हुए शरीर विकास से तड़ाक टूट गयी ।
इस दोहे में आगे चलकर हुए रुपांतर के अनुसार आधी चुड़ियाँ कौओ के गले में पिरोये जाने की बात है ( ' आधा वलया काग-गल') ।
353. 353 और 354 ये सूत्र नपुंसकलिंग के विशिष्ट प्रत्यय देते हैं।
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