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________________ १२८ 349 (1). वि का स्थान करहि के बाद है परंतु अंधारइ के बाद रखकर उसका अर्थ लगायें तो ही उत्तरार्ध का विरोध तीव्रता से प्रकट होगा । 'क्या दूर तक नहीं देख सकती ?" ऐसा भी अर्थ ले सकते हैं । 2 छन्द : 13 + 12 मात्राओं का है। गणविभाजन 6+4+ 3 और 4+4+4. है । 349 (2). छंद मात्रासमक । नाप : 4 + 4 + 4 + ~~ = 16 मात्राएँ । 350 ( 1 ) . अक्खणउँ न जाइ - यह विशिष्ट रूप से अपभ्रंश प्रयोग है । किसी क्रिया के करने में अति कठिनता, अशक्ति या असामर्थ्य दिखाने के लिये अपभ्रंश उस आख्यात के हेत्वर्थ कृदंत के साथ न और जा 'जाना' के वर्तमान काल के रूप प्रयुक्त होते हैं । आधुनिक हिन्दी और गुजराती में स्वरूप और अर्थ के भेद के साथ यह प्रयोग चला आ रहा है। गुजराती में हेत्वर्थ के स्थान पर भूतकृदंत के साथ निषेधार्थक या प्रश्नवाचक अव्यय तथा जाना का पुरुषवाचक रूप या वर्तमान कृदंत प्रयुक्त होता है । हिं. देखा नहीं जाता। गुज. जोयुं जतुं नथी खाधां केम जाय ? सङ्घ नहोतु जतुं आदि । हिन्दी में भूतकृदंत के साथ जाना कर्मवाच्य (Passive Voice) सिद्ध करता है । ( कहा जाता क्या किया जायँ । इस प्रयोग के अन्य उदाहरणों के लिये देखिये भूमिका में 'व्याकरण की रूपरेखा' । अक्खणउँ के बदले अक्खणहँ ऐसा पाठान्तर भी है । है, आश्चर्यद्योतक उद्गार के मध्यकालीन और जैन संस्कृत ग्रन्थों में भी कटरि रूप में प्रयोग किया गया है । कटरि का मूल रूप कट्टर होना चाहिये । शुद्ध अपभ्रंश भूमिका में प्राकृत की भाँति स्वरांतर्गत ट संभव नहीं है । स्वरांतर्गत कृ, च्, ट्, त्, ख ू, घ, आदि अभ्रंशोत्तर भूमिका की विलक्षणतायें हैं । हेमचन्द्र के कुछ उदाहरणों में ऐसा 'आधुनिकता' का रंग दिखाई देता है । तुलना कीजिये कटरि, बप्पीकी आदि । देखिये भूमिका में 'व्याकरण की रूपरेखा' । मुद्धडहे में स्वार्थिक - ड - है । देखिये सूत्र 429 । विच्चि हिन्दी बीच, गुज- बच्चे | देखिये सूत्र 421 । Jain Education International S छन्द रड्डा । यह 'मात्रा' और 'दोहा' इन दो छन्दो के संयोजन से बनता है । पहला खंड मात्रा (छन्द) का और बादका दोहा का । दोनों मिलकर एकात्मक वाक्य या भाव व्यक्त करते हैं । मात्रा छन्द का नाप : पांच चरण, पहला, तीसरा और पाँचवा चरण पन्द्रह मात्राओं का, दूसरा और चौथा बारह मात्राओं का । पहले चरण की : For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
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