Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 196
________________ अकरांत और उकारांत पुंल्लिंग गिरि के रूपाख्यान एकवचन बहुवचन एकवचन बहुवचन तृतीया ए, ण, गिरिएं गिरिण, अनुस्वार गिरि पंचती हे गिरिहे षष्ठी (हे), हुँ, हैं, गिरिहे, गिरि गिरिहुँ गिरिह, गिरि सप्तमी हि हुँ, हि गिरिहि गिरिहुँ, गिरिहि अन्य विभक्ति के प्रत्यय अकारांत पुंल्लिंग के अनुसार । गिरि के गिरी सब . जगह आ सकता है । साहु के रूपाख्यान ऊपरोक्त अनुसार। बालउ, षष्ठी । है ho_on tohd स्त्रीलिंग प्रत्यय बाल के रूपाख्यान एकवचन बहुवचन एकवचन बहुवचन प्रथमा । द्वितीया) उ, ओ बाल बालओ तृतीया ए बालए बालहि पंचमी - बालहे बालहु सप्तमी हि हि बालहि बालहि संबोधन ० बाल बालों बाल के स्थान पर सब जगह बाला आ सकता है । मइ, नई, घेणु, बहू के रूपाख्यान उपर्युक्त अनुसार ।। हेमचन्द्रने सूत्रों में जिनका उल्लेख छोड़ दिया हो ऐसे रूपों के लिये देखिये भूमिका में 'व्याकरण की रूपरेखा' । 355. 355 से 381 तक के सूत्रों में सार्वनामिक रूपाख्यान की विशेषताये बताई गयी हैं । कुछ स्थानों पर हेमचन्द्रने साहित्य से उद्धरण न ले कर तैयार या 'गढ़े हुए' हों ऐसे उदाहरण रखे हैं-संभव है खुद ने रचे हों या फिर पहले के व्याकरणों से लिये हो । प्रस्तुत सूत्र के उदाहरण ऐसे हैं । 359, शायद 361. 363 (2), 369, 372, 373, 374, 376 (3), 379 (1), 380 (1) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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