Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुवाद (है) ब्रह्मन् , जो सर्व प्रकार से विदग्ध हो ऐसे पुरुष कोई विरल (ही)
होते हैं । (अन्यथा) जो वक्र होते हैं वे ठग होते हैं (और) जो सीधे
होते हैं वे बैल । 413
अन्यादृशोऽन्नाइसावराइसौ 'अन्यादृश' वह 'अन्नाइस', 'अवगइस' । वृत्ति अपभ्रशे अन्याशश्नब्दस्य 'अन्नाइस', 'अवशइस' इत्यादेशौ भवतः ।
अपभ्रंश में 'अन्यादेश' शब्द के 'अन्नाइस' और 'अवराइस' ऐसे दो
आदेश होते हैं । उदा० अन्नाइसो । अवराइसो। छाया अन्यादृशः | अन्यादृशः ।
दूसरे के जैसो । दूसरे के जैसा । 414 प्रायसः प्राउ-प्राइव-प्राइम्व-पग्गिम्बाः ॥
'प्रायस्' का 'प्राउ', 'प्राइव', 'प्राइम्स', 'पगिम्द' । वृत्ति अपभ्रंशे 'प्रायस' इत्येतस्य 'प्राउ', 'प्राइव', 'प्राइव' 'पग्गिग्व' इत्येते
चत्वार आदेशा भवन्ति । अपभ्रंश में 'प्रायसू' के 'प्राउ', प्राइव, 'प्राइव' और 'पग्गिम्व' ऐसे चार
आदेश होते हैं । उदा० (१) अन्ने ते दीहर लोअण, अन्नु त भुअ-जुअलु ।
अन्नु सु घण-थण-हारु, त अन्नु-जि मुह-कमलु ॥ अन्नु-जि केस-कलावु, सु अन्नु जि प्राउ विहि ।
जेण निअम्विणि घडिअ, स गुण-लायण-णिहि ॥ शब्दार्थ
अन्ने -अन्ये । ते-ते । दीहर-दीघे । लोअण-लोचने । अन्नु-अन्यद् । त-तद् । भुअ-जुअलु-भुजयुगलम् । अन्नु-अन्यः । सु-सः । घणथण-हार-धन-स्तन-भारः । त-तद् । अन्न-जि-अन्यद् एव । मुहकमलु-मुख-कमलम् । अन्नु-जि-अन्यः एव । केस-कलावु-केशकलापः । सु-स:। अन्नु-जि-अन्यः एव । प्राउ-प्रायः । विहि-विधिः ।
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