Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
________________
वृत्ति
हाथ कटारी पर (ही) है : (ऐसे) पति पर मैं बलि के रूप में दी
जाती हूँ ( = बलि बलि जाती है)। “वृत्ति अत्र 'अंबडी' इति नपुंसकस्य स्त्रोत्वम ।
यहाँ 'अंबडी' ऐसे नपुंसक का स्त्र रिंग होना। उदा० (४) सिरि चडिआ खंति फलइँ पुणु डालइँ मोडति ।
तो-वि महदम स उणाह अवराहिउ न अति ।। शब्दार्थ
सिरि-शिरसि । चडि आ (दे.)-आरूदा: । खंति-वादन्ति । प्फल - फलानि । पुणु-युनः । दाल-शाखाः। मोति-मोटयंति ( = भञ्जन्ति)। तो-वि-ततः अपि । महद्दम-महाद्रुमाः । सउणाह-शकुनानाम् ।
अवराहिउ-अपराधम् । न-न । करंति-कुर्वन्ति । छाया शिरसि आरूढाः फलानि खादन्ति । पुन: शाखाः भञ्जन्ति । ततः अघि
महाटमा: शकुनानाम् अपराधम् न कुवन्ति । अनुवाद सिर पर चढ़ कर फल खाते हैं (और) डालियाँ तोड़ते हैं-फिर भी महान
वृक्ष पंछिओं को दंड नहीं देते ।। अत्र 'डालरें' इत्यत्र स्त्रीलिङ्गस्ट नपुंसकत्वम् ।
यहाँ 'डालइँ' ऐसे स्त्रीलिंग का नपुंसकलिंग होना । 446
शौरसेनीवत् ।। शौरसेनी के अनुसार । वृत्ति अपभ्रंशे घायः शौरसेनीवत् कार्य भवति ।
अपभ्रंश मे कईबार शौरसेनी के अनुसार प्रक्रिया होती है । उदा० सीसि सेहरु खणु विणिम्मविदु ।
खकंणुठि पालंबु किदु दिएँ विहिदु खणु मुंडमालिएँ । जं पणएण तं नमहु कुसुम-दाम-कोदंडु कामहो ॥ सीसि-शीर्षे । सेहरु-शेखरः । खणु-क्षणम् । विणिम्नविदु-विनिर्मापितम् । खणु-क्षणम् | कंटि-कण्ठे | पालंधु-प्रालम्बम् । किदु-कृतम् । रदिएँ-रत्या । विहिदु-विहितम् । खणु-क्षणम् । मुंडमालिऍ-मुण्डमालिकया (= मुण्डमालिका) । जं-यद् । पणऍण-प्रणयेन । तं-तद् । नमहु-नमः ।
कुसुम-दाम-कोदंडु-कुसुम-दाम-कोदण्डम् । कामहों-कामस्य । छाया
यद् रत्या प्रणयेन क्षणम् शीर्ष शेखरः विनिर्मापितम्, क्षणं कण्ठे प्रालम्बम् कृतम् ,
क्षणम् (च) मुण्डमालिका विहितम् तद् कामस्य कुसुम-दाम-कोदण्डम् नमत । अनुवाद जिसे प्रेम से रत ने पल में मस्तक पर शेखर रूप बनाया, पल में कण्ठ
में प्रालम्ब रूप किया (तो) पल में मुण्डमालिका रूप रखा, उस कामदेव के पुष्पमारा के धनुष को प्रणाम करो ।
शब्दार्थ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org