Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अपभ्रंश के 329 से 446 सूत्रों का विषयानुसार विश्लेषण इस प्रकार किया जा सकता है :
स्वरख्यंजनों के विकार या ध्वनिप्रक्रिया-सूत्र 328, 396 से 400, 410 से 412 नामिक ( = संज्ञा के) रूपाख्यान - सूत्र 330 से 354 सामान्य
- 330, 344 से 346 अकारांत पुंलिंग
- 332 से 339, 342, 347 इकारांत-उकारांत
- 340, 341, 343 स्त्रीलिंग
-348 से 352 नपुंसकलिंग
- 353,354 सार्वनामिक रूपाख्यान
- 355 से 381 आख्यातिक ,
- 382 से 389 धात्वादेश
- 390 से 395 अव्यय
- 401, 404 से 406, 414 से 420.
424 च 428, 436, 444 इतर आदेश
- 402, 403, 407 से 409, 413,
421 से 423, 434, 435 तद्धित प्रत्यय
- 429 से 433, 437 । कृत् प्रत्यय
- 438 से 443
- 445 सामान्य स्वरूप
- 446
लिंग
यह निरूपणक्रम कुछ अंशों में स्पष्ट रूप से तर्कविरुद्ध है और इसका एक कारण है उस में जहाँ तक संभव हो वहाँ तक सूत्रो में किफायत करने की वृत्ति ।
इस विश्लेषण पर से हम देख सकते हैं कि प्राकृत से जिन जिन बातों में अपभ्रंश अलग पड़ती है उन बातों की यहाँ पर हेमचन्द्र ने थोड़ी बहुत बेतरतीब एसी एक सूचि बनायी है।
सू. 329 एक स्वर के स्थान पर दूसरा ।
यहाँ पर कहा गया है कि कई बार मूल के एक स्वर के स्थान पर अपभ्रंश में कोई भी दूसरा स्वर आता है । आगे 445वे सूत्र में कहा गया है
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