Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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वृत्ति
अनुवाद (वास्तव में) उस प्रिय वस्तु का स्मरण किया जाता है (जो) जरा सा
(ही) विस्मृत हों । परंतु जहाँ स्मरण हुआ वह स्नेह तो गया ही ।
ऐसे स्नेह को क्या नाम (दे)? उदा० (२) विणु जुज्झे न वलाहु । (देखिये 386/1) 427
अवश्यमो डे-डौ ॥ 'अवश्यम्' का डित् ‘एं', 'अ' । अपभ्रंशे अवश्यमः स्वार्थे डें ड इत्येतो भवतः । अपभ्रंश में 'अवश्यम्' को स्वार्थिक डित् 'एं', 'अ' ये दो प्रत्यय
लगते हैं । उदा० (१) जिभिदिउ नायगु वसिकरहु जसु अधिन्नइँ अन्नइँ ।
मूलि विणलइ तुंबिणिहे अवसे सुक्कहि पन्नइँ ॥ शब्दार्थ जिभिदिउ-जिह्वन्द्रियम् । नायगु-नायकम् । वसिकरहु-वसीकुरुत । जसु
यस्य । अद्धिन्नई-अधीनानि । अन्न-अन्यानि । मूलि-मूले । विणाविनप्टे । तुंबिणिहे -तुम्बिन्या: । अवसें-अवश्यम् । सुक्कति -शुष्कानिभवन्ति । पन्नई-पर्णानि । जिह्वन्द्रियम् नायकम् वशीकुरुत, यस्य अन्यानि अधीनानि । तुम्बिन्याः
मूले विनष्टे पर्णानि अवश्यम् शुष्कानि भवन्ति । अनवाद दसरे जिसके अधीन हैं (उस) जिह्वेद्रिय (रूप) नायक को (ही) वश में
लो। तूबी की जड़ नष्ट होने पर (उसके) पते अवश्य (अपने आप
ही) सूख जाते हैं । उदा० (२) अवस न सुअहि सुहच्छिअहि । (देखिये 376/2) 428
एकशसो डिः ।
छाया
वृत्ति
'एकशस्' का डित् 'ई' । अपभ्रंशे एकशश्शब्दात् स्वार्थे डिर्भवति । अपभ्रंश में, 'एकशस' इस शब्द को स्याथै डित् 'इ' लगता है।
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