Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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उदा०
शब्दार्थ
छाया
अपभ्रंश में, अंत में 'अ' प्रत्ययवाला प्रत्यय ( = अडअ) जिसके अंत में हो ऐसः संज्ञा के स्त्रीलिंग में डित् 'आ' प्रत्यय लगता है । (यही) डित् 'ई' का अपवाद है। पिउ आइउ सुअ वत्तडी झुणि कन्नडइ पइट्ठ । तहाँ विरहहे) नासंतअों धूलडिया-वि न दिट्ठ । पिट-प्रियः । आइउ-आगतः । मुअ-श्रुता । वत्तडी-वार्ता । झुणिध्वनिः । कन्नडइ-कणे । पइट्ठ-प्रविष्टा ( = प्रविष्टः)। तहों-तस्य । विरहहा-विरहस्य । नासंतअहेों-नश्यतः । धूलडिआ-वि-धूलि: अपि । न-न । दिट्ठ-दृष्टा । प्रियः आगतः (इति) वार्ता श्रुता । (तस्य) ध्वनिः (मम) कणें प्रविष्टः ।
तस्य विहिप नश्यतः धूलिः अपि न दृष्टा । अनुवाद बात सुनी (कि) प्रियतम आया (जैसे ही) (उसकी) आवाज (मेरे) कान
में पंठी, (वैसे ही) भागते उस विरह की धूल भी (उड़ती) नजर नहीं
आयी । 433
अस्येदे ।। 'आ' लगने पर 'अ' का 'इ' । वृत्ति अपभ्रंशे स्त्रियां वर्तमानस्य नाम्नो योऽकारस्तस्य आकारे प्रत्यये परे
इकारो भवति । अपभ्रंश में स्त्रीलिंग नाम का जो 'अ'कार (है), उसके बाद 'आ'
प्रत्यय आने पर, उसका 'इ'कार होता है । उदा० (१) धूलडिया-वि न दिछ । (देखिये 432) वृत्ति स्त्रियामित्येव ।
इस प्रकार स्त्रीलिंग में ही । उदा० (२) झुणि कन्नडइ पइल (देखिये 432) 434
युष्मदादेरीयस्य डारः ।। 'युष्मद' आदि के परवर्ती 'ईय' का डित् 'आर' । अपभ्रंशे युष्मादादिभ्यः परस्य ईय-प्रत्ययस्य डार इत्यादेशो भवति । अपभ्रश में, 'युष्मद्' आदि के परवर्ती 'ईय' प्रत्यय का डित् आर ऐसा आदेश होता है ।
वृत्ति
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