Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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छाया
अनुवाद
मया शपथम् कृत्वा कथितम् (यद) केवलम् तस्य जन्म सफलम् यस्य त्यागः शौर्यवृत्तिः धर्मः च न विलुप्तः ॥ मैंने शपथ लेकर कहा (कि) जिसकी दान(वृत्ति), शौर्यवृत्ति और धर्म लुप्त नहीं हुए हैं, मात्र उसीक जन्मा सफल है । अनादौ इति किम् । 'सबधु करेप्पिण' अत्र कस्य गत्वं न भवति । स्वगदिति किम् । 'गिलि गिलि राहु मियंकु' । असंयुक्तानामिति किम् । 'एकहि अक्खिहि सावणु' ।
वृत्ति
(सूत्र में) अनादि ऐसा है तो वह) क्यों ? (जैसे कि) 'सबधु करेप्पिण' में ('करेप्षिणु' का) 'क' (आद्य होने के कारण) का 'ग' नहीं होता; (सूत्र में) 'स्वरात्' ऐसा (है तो वह) क्यों ? (जैसे कि) 'गिलि गिलि राहु मयंकु (देखिये 396/1) । (सूत्र में) 'असंयुक्तानाम् ऐसा है तो वह) क्यों ? (जैसे कि) 'एकहि अक्खिहि सावणु' (देखिये 357/2) ।
वृत्ति
प्रायोऽधिकारात् क्वचिन्न भवति । (सूत्र 329 में) अधिकृत किये गये प्रायः ( = कई बार) शब्द से कहीं. नहीं भी होता । (जैसा कि :)
उदा० (४) जइ केव-इ पावीसु पिउ अकिआ कुड्डु करीसु ।
पाणिउ नवई सगवि जिव सवंगे पइसीसु ।। शब्दार्थ
जइ-यदि । केव-इ-कथम् अपि । पावीसु-प्राप्स्ये। पिउ-प्रियम् ।' अकिआ-अकृतम् । कुड्डु-कौतुकम् । करीसु-करिष्यामि । पाणिउपानीयम् । नवइ-नवे । सरावि-शरावे । जिव-यथा । सवंगे-सर्वाङ्गेन ।
पइसीसु-प्रवेक्ष्यामि । छाया यदि कथम् अपि प्रियम् प्राप्स्ये, अकृतम् कौतुकम् करिष्यामि । यथा
नवे शरावे पानीयम्, (तथा) सर्वाङ्गन प्रवेश्यामि । अनुवाद यदि किसी प्रकार (से) प्रिय को प्राप्त करूँगी, (तो) (किसी ने) न किया
(हो ऐसा) कौतुक करूँगी: नये पुरवे में पानी की तरह (मैं अपने) सर्वाङ्ग से (ही) (प्रिय में) प्रवेश करूँगी ।
उदा० (५) उअ कणिआरु पफुल्लिअउ
गोरी-वयण-विणिज्जिअउ
कंचण-कंति-पयासु । नं सेवइ वण-वासु ॥
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