Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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४८
छाया
अनुवाद
दुभिक्खे-रण-दुर्भिक्षेण । भग्गाई-भमाः । विणु-विना | जुज्झे-युद्धेन । न-न । वलाहुँ-वलामहे । प्रिय, यत्र खड्ग-विसाधितम् लभामहे, तस्मिन् देशे यामः । रण-दुर्भिक्षण भमाः (वयम्) युद्धेन विना न वलामहे ।। (हे) प्रिय, खड्ग से अर्जित (खड्ग के प्रयोग द्वारा प्राप्त वस्तु) जहाँ हमें मिले, वैसे देश में चलें । युद्ध के अकाल से हम (तो) टूट चूके, युद्ध बिना हम स्वस्थ नहीं होंगे । पक्षे ॥ प्रतिपक्ष में'लहिमु' इत्यादि । ('लहहुँ' आदि के बदले) 'लहिमु' अादि (होता है) ।
हि-स्वयोरिदुदेत् ।। 'हि', 'स्व' का 'इ', 'उ', 'एँ' । पञ्चम्या हिस्वयोरपभ्रंशे 'इ', 'उ' 'ऐं' इत्येते त्रय आदेशा वा भवन्ति ।।
वृत्ति
तदा०
387
बृत्ति
इत् ।
आज्ञार्थ के 'हि', 'स्व' के, अपभ्रश में 'इ', 'उ', 'ऐं' ऐसे तीन
आदेश विकल्प में होते हैं । (जैसे कि) 'इ' :उदा० (१) कुंजर सुमरि म सल्लइउ सरला सास म मेल्लि ।
कवल जि पाविय विहि-वसिण ते चरि माणु म मेल्लि ॥ शब्दार्थ कुंजर-(हे) कुञ्जर । सुमरि-स्मर | म-मा | सल्लइउ-सल्लकीः । सरला
सरलान् । सास-श्वासान् । म-मा । मेल्लि (दे.)-मुञ्च | कवल-कवलाः। जि-ये। पाविय-प्राप्ताः । विहि-वसिण-विधि-वशेन । ते-तान् ।
चरि-चर | माणु-मानम् । म मा । मेल्लि (दे.)-मुञ्च ॥ छाया
(हे) कुञ्जर, सल्लकी: मा स्मरं । सरलान् . श्वासान् मा मुञ्च । कवलाः
विधि-वशेन प्राप्ताः, तान् चर । मानम् मा मुञ्च ॥ अनवाद हे कुंजर, सल्लकिओं को याद मत कर | ठंडी आहे. मत भर ।
विधिवश जो कौर मिले हैं, वह चर । मान मत छोड़ । वृत्ति उत् ।
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