Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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छाया
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यः सतः भोगान् परिहरति, तस्मै कान्ताय (अहम् ) बलीक्रिये । यस्य
(तु) खल्वाटम् शीर्षम् , तस्य देवेन अपि (१) मुण्डितम् । अनुवाद उपलब्ध होने पर भी जो भोगों का त्याग करता है ऐसे पति पर (मैं)
बलिदान के रूप में दी जाऊ (= उस पर बलि बलि जाऊँ)। वैसे तो जिसका सिर मुंड़ा हुआ है, वह (तो) भाग्य द्वारा भी (? भाग्य ने
ही मूंड़ा गया है। वृत्ति पक्षे, साध्यमानावस्थात् 'क्रिये' इति संस्कृतशब्दादेव प्रयोगः ।
इसके अन्य पक्ष में, 'क्रिये'-यह साध्यमान अवस्थावाले संस्कृत शब्द में
से ऐसा प्रयोग (होता है) :उदा० (२) बलिकिज्जउँ सुअणस्सु । (देखिये 338) ।
भुवः पर्याप्तौ ‘हुच्चः' । 'भू' का 'पर्याप्ति' अर्थ में 'हुच्च' । वृत्ति
अपभ्रंशे भुवो धातोः, पर्याप्तावथें वर्तमानस्य 'हुच्च' इत्यादेशो भवति । अपभ्रंश में पर्याप्ति के अर्थ में स्थित 'भू' धातु का 'हुच्च' ऐसा आदेश होता है । अइ-तुंगत्तणु ज यणहँ सो छेउ न-हु लाहु । सहि जइ केव-इ तुडि-वसेण अहरि पहुच्चइ नाहु ॥ अइ-तुंगत्तणु-अति-तुङ्गत्वम् । जं-यद् । थणहँ-स्तनयोः । सो-सः । छेअउ-छेदः । न-हु-न खलु । लाहु-लाभः । सहि-सरिख । जइ-यदि ? केवइ-कथमपि । तुडि-वसे ण-त्रुटि-वशेन, कालविलम्बेन । अहरि-अधरे ।
पहुञ्चइ-प्रभवति । नहु-नाथः । छाया
स्तनयोः यद् अति-तुङ्गवद् , स: छेदः, न खलु लाभः । सखि, यदि नाथः अघरे प्रभवति, कथमपि कालविलम्वेन (एव प्रभवति) ॥
उदा०
शब्दार्थ
अनुवाद
स्तन का जो अति तुगत्व (है), वह हानि (रूप है), नहिं की लाभ (रूप), (क्योंकि) सखी. (उसके कारण) पिया यदि होठों तक पहुंचते हैं तो (वह) भी, विलंब से (ही) पहूँचते हैं ।
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