Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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तं-तद । अक्खणह-आख्यातुम् । न-न । जाइ-याति । कटरि-कटरि (=आश्चर्यम्) थणंतर-स्तनान्तरम् । मुडहे-मुग्धायाः । जं-यद ।
मणु-मनः । विच्चि-मध्ये । न-न । माइ-माति ।। छाया (हे) तुच्छ-राग, तुच्छ-मध्यायाः तुच्छ-जल्पनशीलायाः (= तुच्छम्
वदन्त्याः) तुच्छाच्छ-रोमावल्याः तुच्छतर-हासायाः प्रिय-वचनम् अलभमानायाः तुच्छ-काय-मन्मथ-निवासायाः तस्याः प्रियाः यद् अन्यद् तुच्छकम् तद् आख्यातुम् न याति (= न शक्यम्) । मुग्धायाः स्तनान्तरम्
आश्चर्यम्, यद् मनः मध्ये न माति ॥ अनुवाद (हे) तुच्छ प्रेमवाले, जिसकी कटि सूक्ष्म है, जो सूक्ष्म बोलनेवाली है,
जिसकी रोमावलि सूक्ष्म और सुंदर है, प्रिय वचन से वंचित होने के कारण जिसका हास्य सूक्ष्मतर है तथा जिसकी देह कामदेव के निवासरूप देह भी सूक्ष्म है, ऐसी उस प्रिया की दूसरी (एक ऐसी चीज) सूक्ष्म है (कि) वह कही नहीं जा सकती : (उस) मुग्धा के स्तनों के बीच की दरी ! आश्चर्य ! (वह तो इतनी सूक्ष्म है) कि इसके वीच में मन (जैसा सूक्ष्मतम पदार्थ भी) समा नहीं सकता। ङसे: ।
'सि' का :उदा०
(२) फोडेंति जे हियडउँ अप्पण उ ताहँ पराई कवण घण । रक्खेज्जहु लोअहो अप्पणा बालहेजाया विसम यण ॥ फोडेंति-स्फोटयतः । जे-यो। हियडउँ-हृदयम् । अप्पणउँ-आत्मीयम् । ताहँ-तयोः । पराई-परकीया (= परकृते)। कवण-का । घण-घृणा । रक्खेज्जहु-रक्षत । लोअहो -(हे) लोकाः । अप्पणा-आत्मानम् । बालहे -
बालायाः । जाया-जातौ । विसम-विषमौ । थण-स्तनौ । छाया यौ आत्मीयम् (एव) हृदयम् स्फोटयतः, तयोः परकृते का घृणा । (हे)
लोकाः आत्मानम् बालायाः रक्षत, (यतः) (तस्याः) स्तनौ विषमौ जातौ ॥ अनुवाद जो अपना (ही) हृदय फोड़ते हैं, उन्हे परायों की क्या दया ? (हे)
लोगों, (तुम) (इस) वाला से अपने आपको बचना, (क्योंकि) (उसके) स्तन विषम बने हैं।
वृत्ति
शब्दार्थ
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