Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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छाया
अनुवाद
शब्दार्थ
उदा० (३) हिअडा, फुट्टि तड-त्ति करि
छाया
अनुवाद
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२५
तस्याः मुग्धायाः एकस्मिन् व्यणि श्रावण: अन्यस्मिन् भाद्रपदः, महीतलस्रस्तरे माघः, गण्ड--स्थले शरत्, अङ्गेषु ग्रीव्मः, सुखासिका - तिलवने मार्गशीर्ष:, मुख- पङ्कजे (च) शिशिर : आवासितः
वृत्ति
उस मुग्धा की एक आँख में सावन ने (और) दूसरी में भादों ने, जमीन पर लगे बिस्तर में माघ ने, कपोलप्रदेश पर शरदने, अंगों में ग्रीष्म ने, सुखशाता रूपी तिल के वन में अगहन ने (और) मुखपंकज पर शिशिर ने ( इन दिनों) निवास किया है ।
देवख ह - विहि कहि ठवइ हिडा - ( है ) हृदय | फुट्टि - स्फुट । काल- क्खे - काल - क्षेपेन । काइँ - किम् हत - विधिः । कहि - कस्मिन् विणु-विना । दुक्ख - सयाइँ - दुःख शतानि ।।
।
काल - क्वें काहूँ ।
पइँ विणु दुक्ख - सयाइँ ॥ तड-त्ति करित्रट् इति कृत्वा ।
देवखउँ - पश्यामि । हय-विहि
कुत्र । ठवइ - स्थापयति ।
(हे ) हृदय, ऋट् इति कृत्वा स्फुट । काल-क्षेपेन किम् । पश्यामि त्वया विना हत - विधिः दुःख - शतानि कुत्र स्थापयति इति ॥
(हे ) हृदय, (तुं) तड़ाकू से फूट ( = फूट जा) विलंब लाभ ? देखूँ तो सही कि मुँहझौंसा विधाता तेरे बिना कहाँ रखता है ?
उदा० (१) कंतु महारउ, हलि सहिऍ, अस्थिहि ँ सत्थिहि ँ हरिथहि
यत्तत्किम्भ्यो ङसो डासुर्न वा ॥
'यद्' 'तद्' और 'किम' के बाद के 'ङस्' का 'डासु' ( = ० आसु ), अथवा नहीं ।
अपभ्रंश में 'यद्', 'तद्' और 'किम्' बाद आते 'ङ' (षष्ठी एकवचन के ऐसा आदेश विकल्प में होता है ।
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अपभ्रंशे यत्तत्किम् इत्येतेभ्योऽकारान्तेभ्यः परस्य ङसो 'डासु' इत्यादेशो वा भवति ॥
ु
पइ - त्वया ।
(करने) से क्या
सेंकडों दुःखों को
इन अकारान्त (सर्वनामों) के प्रत्यय) का 'डासु' ( ' = आसु')
निच्छइँ रूस जासु । वि ठांउ वि फेडइ तासु
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