Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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छाया
अनुवाद
यथा यथा श्यामला लोचनयोः नितराम वक्रिमाणम् शिक्षते, तथा तथा मन्मथ: निजकान् शरान् खर-प्रस्तरे तीक्ष्णयति । जैसे जैसे (वह) श्यामा लोचन की अतिशय वक्रता ( = कटाक्षपात) सोख रही है वैसे वैसे (मानों) मन्मथ अपने शर (सान के) कठोर पत्थर पर (घिसकर) तीक्ष्ण बनाता जा रहा है। अत्र स्यम्-शसाम् ॥ यहाँ (“ उपर्युक्त उदाहरण में) 'सि', 'मम्' और 'शस ' (का लोप हुआ है)।
वृत्ति
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षष्ठयाः ॥
षष्ठी का । वृत्ति अभ्रंशे षष्ठया विभत्तयाः प्रायो लुग भवति ।
अपभ्रंश में षण्टी (विभक्ति के प्रत्यय) का कई बार लोप होता है । उदा० संगर-सएहि जु वण्णिभइ देक्खु अम्हारा कंतु ।
अइ-मत्तहँ चत्तंकुसहँ गय कुंभ. दारंतु ॥ शब्दार्थ
संगर-सऍहि-पर-शतैः । जु-यः । वणिअइ-वर्ण्यते । देक्खु-पश्य । अम्हारा-अस्मदीयम् । कंतु-कान्तम् । अइ-मत्तहँ-अति-मत्तानाम् । चत्तंकुसहँ-त्यक्ताङ्कुशानाम् । गय-गजानाम् । कुंमइँ-कुम्भान् । दारंतु
दारयन्तम् ॥ छाया यः सङ्गर-शतैः वर्ण्यते (तम् ) अस्मदीयम् कान्तम् अतिमत्तानाम् त्यक्ताङ्क
शानाम् गजानाम् कुम्भान् दारयन्तम् पश्य ॥ अनुवाद सैकड़ों संग्राम द्वारा जिसका वर्णन किया जाता है (ऐसे) हमारे नाथ को,
अंकुश से भी वश में नहीं आते ऐसे अति मत्त गजों के गंड(स्थल)
विदीर्ण करते हुए देखो। वृत्ति पृथग्योगो लक्ष्यानुसारार्थः ॥ अनुवाद (अन्वय में 'गन' और 'कुम्भ') भिन्न भिन्न ( = असमस्त) लिए हैं,
वह प्रतिपाद्य के अनुसरण के लिए ।
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