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कावड
हए कृष्णा, सुधार, अपने अन्धे माता पिता को ले जाता चित्र अंकित रहता है जिस पर लिखा रहता है-"इस पेटी श्रवण, सुनार, तोता पढाती हुई वेश्या, तेजी छींपा, बुनकर के अन्दर जो पैसे डाले वो मेरे पास पाते हैं। काशीपुरी में कुम्हार तथा दम्पति ।
अन्नपूर्णा देवी के मन्दिर पर मेरे पास बाते हैं जिससे गायों आठवा पाट-दो दरवाजे जिन पर घोड़ा, घाणी में को घाम डालते हैं और मेरे एक हजार कावद फिरती हैं। पिलता हुआ राक्षस, सूली पर लटकता पुरुष ।
द. कुदणावाई बामणी।" पीछे की ओर-सरस्वती, कृष्ण सुदामा मिलन, राजा गौशाला की पेटी के एक ओर चांदे पर रेबारी देव बलि की जाती पाव
सोता तथा दूसरी ओर अन्दर की तरफ पाबूजी अपनी कला की मनमोहक झांकी।
घोडी पर बैटे हुए दिखाये जाते हैं । अन्दर की ओर गुप्त
याही होती है जिस पर लिखा रहता है-"यह गुप्त की नवां पाट-भक्त कबीर रोहिदाम चमार, रामाधार
बाडी है जो दान करो वह मेरे पास पाता है । दः कुदणानाले घोड़े पर पीछे हरजी चंबर ढोरते हुए, भागे डाली
बाई बामणी" बाई भारती करती हुई, पास में खडा भाणेज हाथ जोड़े।
___ कावडिया भाट को जब कभी कावड़ बनवानी होती है, रथ-हाथी, देवर, भौजाई के कांटा निकालता हुआ।
वह खेरादी को लिख देता है । कावड़ को भाट चौखुणे पीछे की ओर-तुलछामाता, पंथवारी, रामदेव जी के चौरस कपड़े में लपेटे रखता है। अपने साथ वह मयूर पंख पगल्ये, जोडे, नारसिंधी शेर पर, कालाजी-गोराजी। का छोटा मा झाइ भी रखता है जिससे वह कावड मान
दम पाट - रेवारी दम्पति-पीछे औरत तीर चलानी करता रहता है। हुई, प्रागे मन्दर जाना हुअा दम्पति, कृष्ण की रासलीला, इस प्रकार हम देव हैं कि कावड़ एक छोटा सा कृष्ण, गोपियों के कपड़े चुराते हुए । कृष्ण नायिका वंश चलता फिरता बगल में दबा कावड़िया भाटों का बगल धारण कर राजा रतन के बाल बनाते हुए । बाकी जोडे । मन्दिर है जिसके कपाटों पर चित्रित नाना प्रकार की धार्मिक
पीछे की ओर-पीतवर रामेश्वर, राजा गन्धर्व सन झांकियों के दर्शन कर भक्तजन परम कल्याण एवं अनन्त इन्द्र का लड़का, जोड़े, दूध पीता हुभ्रा सांप।
मुग्व की गंगा में मगबोर होकर नाना पापों से मुक्ति पा
अपना जन्म सार्थक करते हैं । पाठ पाट वाली कावड़ १२" लम्बी ६" चौडी तथा ६" ऊंची होनी है। दस पाट वाली कावड़ १४॥ लम्बी १. कावड़ सम्बन्धी इस जानकारी के लिए लेखक बमी के -" चौड़ी तथा ७-८" ऊंची होती है । इसके एक ओर लोक चित्रकार श्री मांगीलाल मिस्त्री के अत्यन्त गौशाला की पेटी बनी हुई होती है। दरवाजे पर गाय का श्राभारी हैं।
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